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28 Feb 2024 · 1 min read

एक घर था*

एक घर था..!
अब मकान है
दीवारें दरक रही हैं
नींव हिल रही है
कहने को सभी हैं
रहता कोई नहीं है
चींटी भी नहीं चढती
दीमक दीवार भूल गई।
सब कुछ नया-नया है
सामने एक दरख़्त
बरसों से खड़ा है..
मजबूरी है उसकी..
वही तो गवाह है..
वह
युग का अंतर
देख रहा है…
मकान और घर का
फ़र्क़ देख रहा है।
अब फूल रहे/न पत्ते
मगर, अब भी वो
आसमान तोल
रहा है।।
युग बोल रहा है..
जी हाँ
युग डोल रहा है।।
सूर्यकान्त

Language: Hindi
47 Views
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