एक गुल
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एक गुल
बगीचे में गुलज़ार हुआ गुल ..
ज़्यादा ही खिला ,मुस्कुराया ..
पूछते सखा उसके –
क्यों खिले हो इस कदर ?????
जीवन तो दो पल का है …
तेज हवा के झोंके संग बह जाओगे ,
नहीं ,
उड़ जाऊँगा…
सूरज की किरणे जला देगीं ,
नहीं,
और चमक जाऊँगा ..
बारिश भिगो देगीं …
नहीं ,
नया बन जाऊँगा
वो देखो ……..
माली तोड़ने आया है ..
तो क्या ..???
यही तो जीवन है …
शायद ! बनूँ गुलदस्ते का गुल ..
शायद ! देव का हार ..
शायद ! नववधू के जुड़े की शोभा ..
या !
मिटटी की खाक में मिल जाऊँगा ..
तो क्या ???
यही तो जीवन है …
जो भी है , अभी है ..
अगले पल का पता नहीं
इसी पल में जीवन है …..