एक गीत
पात कब तक झरेंगें
फूल कब तक खिलेंगें
आम की बाग के कच्चे कच्चे
बौर कब तक पकेंगें
नीम के पेड़ पर घोसलें की
आस कब तक सधेंगें
मेघ पुरवाईयों के भरोसे
और कब तक रहेंगें
वेदना, पीर, संताप,संत्रास..
आप कब तक सहेंगें
आँसुओं में नहाए हुए
दुःख ये कब तक थिरेंगें
देखते-देखते राह उनका
नैन कब तक थकेंगें…. 🌿🌿