एक ग़ज़ल
क्या ये अंधेरों की परवरिश है
जो चाँद इतना चमक रहा है
कोई तो रिश्ता है रोशनी से
अंधेरा सदियों से संग खड़ा है
जो एक दिन छू लिया था तुमने
वो पतझड़ों में शज़र हरा है
हम अपनी धड़कन से थक गये
है सांसें छोटी या दिन बड़ा है
उदासियां क्यूँ हैं हर ख़ुशी संग
दिल लम्हे लम्हे से लड़ रहा है
सुना है मैदाने ज़िन्दगी में
कभी ख़ुशी का शहर रहा है
दिया था चुपके से मुठ्ठियों में
मेरा भरोसा कहाँ गिरा है
बड़ा है तन में, अड़ा है मन में
ये दर्द थोड़ा सा सरफिरा है
तुम्हारी यादों का एक जुगनू
है साथ लेकिन बुझा बुझा है
मगर प्रभू साथ चल रहे है
ये आसमानो का फैसला है
अगर में बिखरी हर एक ज़र्रा
स्नेह के रंग से ही भरा है
– क्षमा उर्मिला
#thebittispinkflower