एक ग़ज़ल
सच खड़ा था हाथ बाँधे झूठ के दरबार में,
आज देखा यह नज़ारा भी सरे-बाजार में ।
हौंसला हमको हमारे जोश ने हरदम दिया,
दूरियाँ तय कर न पाये जो चले थे कार में ।
आ चुभो दें कील भी मेरे बदन में आज तू ,
वह मसीहा बन गया जिसको चुना दीवार में ।
है मिला ईनाम उसकी तुकबंदियों को बड़ा,
कह रहे हैं यार उसका खास था सरकार में ।
आँच आने ही नहीं दी हमने उसूलों पर कभी,
रीत को ज़िंदा रखा हरदम यहाँ संसार में ।
– श्रीभगवान बव्वा, प्रवक्ता अंग्रेजी, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, लुखी, रेवाड़ी ।