एक ग़ज़ल
एक ग़ज़ल
रोग सारे पालते ही जा रहें हैं ,
एक दूजे को यहां सब खा रहे हैं ।
जानता हूं आपकी औकात को मैं,
नाग बन कर बीन पर लहरा रहे हैं।
डूब जाना है जरूरी, आज तारों !
है सुना, मिलने हमें वह आ रहें हैं ।
याद उनकी खास है, दिल में बसेरा,
एक अरसे से उसे बहला रहे हैं ।
श्री यही हैं सोचते सब क्या कहेंगे,
रोक कर आहें ज़ख्म सहला रहें हैं ।