एक गंभीर समस्या भ्रष्टाचारी काव्य
भारत जैसे भव्य सी भुवन में
भ्रष्टाचारी एक गंभीर समस्या
पूर्ण देश में अपनी जाल फैला
हमारे मुल्क को कर रही दुर्बल ।
देश की हालत है इस काबिल
कि एक बार जो बन गया नेता
उसे वित्त की न होती कभी खेता
वह संपूर्ण जिंदगी भी खा सकता ।
भारत के लगभग लगभग
जितने भी जन अधिकारी है
सब के सब होते है उपप्रदानी
इनका तनखा से ना भरता पेट ।
भ्रष्टाचारी को दूर करना
ऐसा लगता जैसा मानो
चलनी में पानी भरने का
हो कार्य, आखिर ऐसा क्यों ? …
क्यों डर रहे आज पुलिस से लोग
जो जनता के रक्षक है कहलाते
अपनी समस्या का समाधान हेतु
क्यों जाने से डरते है इनके पास
क्यों इतनी भ्रष्टाचारी है चारों ओर
हमारी इस चारु सी कलित भव में
क्यों पुलिस लेती रिश्वत लोगों से
एफ०आई०आर० लिखने से पूर्व ।
छोटे से लेकर बड़े अधिकारी तक
क्यों आज इतने भ्रष्ट होते जा रहे
लोग सरकारी स्कूलों से अतिशय
प्राइवेट को क्यों मान रहे है आज
सरकार की कोई योजना का लाभ
क्या गरीबों तक सही से पहुंच रही
इसकी भी उन्हें करनी चाहिए शोध
आधा सीधा तो मध्यवाले ही खा लेते ।
भ्रष्टाचारी दीमक की तरह देश को
खोखला करने का करती है कार्य
भ्रष्टाचारी ! भ्रष्टाचारी ! भ्रष्टाचारी !
क्यों बढ़ रही हमारे ललाम मुल्क में ।
✍️✍️✍️ लेखक:- अमरेश कुमार वर्मा