एक ख्वाब…
मुझे पता ही नही ,मै कब मशहूर बन गई ,
एक ख्वाब देखा था ,मुक्कमल फिजा बन गई …
दिप जलाया था आगंण मे कब का ,
इस दिपक का उजाला नही सवेरा बन गई …
क्या लिख पाऊंगी कभी ,हाल ए दिल मेरा ,
क्या कभी जबाँ साथ निभायेगी ,वो दवाँ बन गई …
सुना है मैंने वही लिखते है ,जो दर्द से तड़पते है ,
हम दर्द उधार मांगले ,ये नौबत नही आई दास्ता बन गई …
हो सकती है किसीको शिकायत हमसे, हम मुसाफीर है ,
चलने की चाँह रखते है ,अच्छा लगे तो याद किजीये
या भूले बिसंरे गीत बन गई …
अब खुदसें ही हम दोस्ती करके बैठे है ,जमाने को ठुकराकर ,
जो भी ख्यांल आया है दिल मे गजल बन गई …