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6 May 2024 · 1 min read

एक ख्वाब…

मुझे पता ही नही ,मै कब मशहूर बन गई ,
एक ख्वाब देखा था ,मुक्कमल फिजा बन गई …

दिप जलाया था आगंण मे कब का ,
इस दिपक का उजाला नही सवेरा बन गई …

क्या लिख पाऊंगी कभी ,हाल ए दिल मेरा ,
क्या कभी जबाँ साथ निभायेगी ,वो दवाँ बन गई …

सुना है मैंने वही लिखते है ,जो दर्द से तड़पते है ,
हम दर्द उधार मांगले ,ये नौबत नही आई दास्ता बन गई …

हो सकती है किसीको शिकायत हमसे, हम मुसाफीर है ,
चलने की चाँह रखते है ,अच्छा लगे तो याद किजीये
या भूले बिसंरे गीत बन गई …

अब खुदसें ही हम दोस्ती करके बैठे है ,जमाने को ठुकराकर ,
जो भी ख्यांल आया है दिल मे गजल बन गई …

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