एक ख़्वाहिश
भूख पूछ रही है रोटी से
प्यास पूछ रही है पानी से
कब होगी दोस्ती हमारी
बता दो तेरी इस दीवानी से
पूछ रही है बिलखती ज़िंदगियाँ जंग से
पूछती है ये रूँधी आवाज़ हमारे कानों से
सबकुछ ठीक हो जाएगा कुछ दिनों में
कब मुक्ति मिलेगी तेरे इन बहानो से
तंग आ गए है सब इस जंग से
कब मुक्ति मिलेगी बच्चों को इस डर से
है आज तो माँ बाप साथ उनके
कौन जाने ये साथ छूट न जाए कल से
कब निजात मिलेगी बुरे वक्त से
जब भूख डरेगी रोटी से
आएगा क्या वो वक्त भी दुनिया में
जब तलवार डरेगी गर्दन से
जीत जाएगा जब उजाला अंधेरे से
मुक्त हो जाएगी ये धरा ग़रीबी से
है ये ख़्वाहिश, काश आ जाए जल्द वो क्षण
जब महकेगी ये धरा सिर्फ़ खुशियों से।