एक क्षणिका
* एक क्षणिका*
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जब भी अम्मा गईया माता को कौरा खिलाने आती। मुहल्ले के 3-4 आवारा कुत्ते भी गईया माता का कौरा खा जाते। गईया माता तो कुछ नही करती, मग़र अम्मा चिढ़ जाती की, “भोजन के पहले भाग को कुत्ते गईया माता को खाने नही देते, अपनें खा जाते है।और थाली भी जूठा कर देते है।”
इसलिए अम्मा आज हाथ में बड़ा सा डंडा लेकर कौरा खिलाने आई। अम्मा के बदले स्वभाव को देख कुत्तों की हिम्मत डोल गईं।ओ सब दूर से गईया को कौरा खाते एकटक देखने लगे। अम्मा भी खुश थी, की आज गईया माता उनका पूरा कौरा खाएगी। अम्मा बड़े भक्ति भाव से गईया माता को कौरा खाते देख लीन हो गई। तभी कुछ दूर के ट्रांसफार्मर में तेज आवाज हुई। गईया माता कौरा छोड़कर भाग गई। शॉर्ट होकर बिजली का तार तेज़ी से अम्मा की तरफ नीचे आने लगा, की आवारे कुत्ते दौड़ते हुए आये और अम्मा को पीछे धकेल दिया। कुँ कुँ करते कुत्ते अम्मा के आस पास घूमने लगे। आँखों मे आँसू ले, अम्मा ने सब पर हाथ फेरा।
अम्मा को आज बेटे की बात सच लगने लगी, “कि भगवान किसी ख़ास जीव में नहीं, सबमें रहता है। बस देखने की जरूरत है।”
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
देवरिया उत्तर प्रदेश