*एक किसान*
कल साल बदल गयी तो हुआ क्या ?आज फिर ।
दिन महीने रात घड़ियां , वैसी ही रही आज फिर।।
हमें तो ढूंढनी ही पड़ेगी , खेतों में वे मंडियाँ घुस
ठंडी हवा इतनी बही, है मुशिकल खाना आज फिर।।
तलवे फ़टे के फ़टे यों ही , मुलाजिम हूँ जनाव में
छायी अँधेरी सब तरफ ,हैं घिरे बादल आज फिर ।।
पिछली फसल में बचा क्या, कर्ज भी चुकता नहीं
खाली पड़ी हैं कोठरी वो , हैं भूखे बछड़े आज फिर।।
इस फसल का भरोसा क्या ,अभी तक पनपी कहाँ
फ़िकर खाये जा रही , कहीं ओले ना गिरें आज फिर।।
मर ना जाऊं कहीं इसी वरस, साँसे खिंचती जा रहीं
“साहब” बदलती जिंदगी में , दिया क्या है आज फिर।।