‘एक कहानी हिंदुस्तान की कहता हूँ’
एक कहानी मैं अपने हिन्दुस्तान की कहता हूँ।
भारतवर्ष का हूँ निवासी भारत वर्ष सजाता हूँ।
पुण्य भूमि यह भारत भूमि
देवभूमि कहलाती है।
विश्व की यह महाशक्ति
विश्व को ललचाती है।
पुरखों का यह देश हमारा
जिसे स्वर्ग भी कहते हैं।
अवनी के बीच खड़ा गर्व से
देख शत्रु भी जलते हैं।
इसकी पावन मिट्टी को मैं
अपने भाल मलता हूँ।
एक कहानी मैं अपने हिन्दुस्तान की कहता हूँ।
भारतवर्ष का हूँ निवासी भारत वर्ष सजाता हूँ।
हिमालय हे शीश जिसका
गंगा – यमुना केश है।
पश्चिम पूर्व के राज्य भुजाएँ
हृदय मध्यप्रदेश है।
आंध्र महाराष्ट्र बलशाली जंघा
व्यापार के यह केंद्र है।
तमिल- केरल है चरण जिसके
अमृत से हिन्द पखारता है।
इस वित्त महाशक्ति को मैं
अपने हृदय बसाता हूँ।
एक कहानी मैं अपने हिन्दुस्तान की कहता हूँ।
भारतवर्ष का हूँ निवासी भारत वर्ष सजाता हूँ।
यह त्याग और बलिदानों की
भूमि है वीर – वीरांगनाओं की।
महाराणा-शिवाजी के गौरव की
लक्ष्मी – दुर्गा के सौरव की।
पन्ना-भामाशाह के त्याग की
अहिल्याबाई के सुहाग की।
चंद्रशेखर व भगत सिंह के
जीवन – वृत्त व मान की।
देश के उन महान वीरों को
शत्- शत् नमन करता हूँ।
एक कहानी मैं अपने हिन्दुस्तान की कहता हूँ।
भारतवर्ष का हूँ निवासी भारत वर्ष सजाता हूँ।
जहाँ श्रीराम ने जीवन जीने का
आदर्श मार्ग प्रशस्थ किया।
जहाँ श्री कृष्ण ने मानव समाज को
गीता -ज्ञान उपदेश दिया।
जहाँ गौतम बुद्ध की वाणी सुन
करुणा – प्रेम के भाव जगे।
जहाँ महावीर की शिक्षा पाकर
जीव-दया के भाव जगे।
उन्ही देवों के पावन चरणों में
अपना शीश झुकाता हूँ।
एक कहानी मैं अपने हिन्दुस्तान की कहता हूँ।
भारतवर्ष का हूँ निवासी भारत वर्ष सजाता हूँ।
जहाँ कर्म से भाग लिखते
और बल से इतिहास नया।
कठिन परिश्रम के बूते पर
होते विकास के काम जहाँ।
किसान खेत में अन्न उगाते
और मजदूर निर्माण नया।
कर्म ही जिसकी पूजा है
कर्म ही विधान जहाँ।
ऐसी कर्मभूमि भारत पर
मैं अभिमान करता हूँ।
एक कहानी में अपने हिन्दुस्तान की कहता हूँ।
भारतवर्ष का हूँ निवासी भारत वर्ष सजाता हूँ।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
्््््््््््््््््््््््््््््््््््