एक कसम
एक क़सम
मेरे जहाँ में तुम सब से जुदा होते हो।
तुम अपने आप में अपनी वफा होते हो।।
कभी ठहरे हुए बादल की तरहा।
कभी बिखरे हुये आँचल की तरह।।
तुम ख़्यालों की दुनिया मं मेरे पास होते हो।
मेरे दिल की मेरे रूह की प्यास होते हो।।
तुम भी कुछ खोये-खोये से रहते होंगे।
कुछ तो जागे हुये कुछ सोये हुऐ रहते होंगे।।
क्या ख़बर कैसे तुमको तन्हाई सताती होगी।
याद मेरी तुमको भी तो आती होगी।
तसव्वुर में तुम्हे घर का नक़्शा आता होगा।
हर जगह चाहतो दिखलाता होगा।
अपनी यादो में तुमने मुझको ही पाया होगा।
दिल में कुछ दर्द रह-रह के उभर आया होगा।।
तुम अपने आप में गुमसुम यूं न खो जाना।
मेरी क़सम है तुमको उदास ना हो जाना।।
ग़मे फुरक़त के ये दिन भी गुज़र जायेगें।
अंधेरे दूर होगें सवेरे बिखर जायेंगे।।
एक क़सम
मेरी उम्मीद है बाक़ी एक किरत की तरह।
अगर मिले ता तुम जहां मिले भी तो क्या।।
ख्वाब फिर भी कुछ बया कर रखे हैं मैंने।
कि टूटे खिलौने सजा कर रखें हैं मैंने।।
माता कि जिन्दगी में ज़रा जददोजहद रही।
पर ये आरजू दिल में बाहम रही।।
चमन में खुश्बू बाग़ में बहार रहे।
खिले गुल हमेशा और गुलज़ार रहे।।
तुम्हारी ख़ातिर लिया है रंजों ग़म हमने।
तुम्हीं तो हो जिसे चाहा है इस तरह हमने।।
हरेक बात का कर्ज़ उतार दिया वक़्त ने।
तुम्हारे कान्धे से ये बोझ उतार दिया रब ने।।
अब इन्तज़ार फक़त तुम्हारे आने का है।
कि बस ये मौसम खिज़ा के जाने