एक और ग़ज़ल
ग़ज़ल(221 1221 1221 122)
तरकश के अभी तीर न बेकार करो जी।
मासूम दिलों पर न ऐसे वार करो जी।
मैं आशिक़ हूँ सिर्फ तिरा ही इक जानम,
ख़त इश्क़ का है मेरा स्वीकार करो जी।
देखो समझो और मनन भी कर लो तुम,
इस तरह सिरे से ही न इनकार करो जी।
उम्मीद नई भी तुमसे ही बस यारा,
मेरे सपने को अब साकार करो जी।
महफूज़ तुझे मैं हरदम जान रखूँगा,
तुम इस ‘विश्वासी’ पर इतबार करो जी।