कर सको तो
तेरा साथ छूटा,सम्हलने में वक्त लगा,
अब फिर उसी मौसम,उसी प्रेम की तमन्ना मुझे,
एक पल एक दिन एक घड़ी,तुम जो भी मंजूर करो,
बस चन्द लम्हे उन जुल्फों तले बीतना मंजूर करो,
सुबह की शबनम हो वो रात की चाँदनी,
खुला उपवन या के वो स्याह रौशनी,
फिर एक बार उन्ही एहसासों में जीना मंजूर करो,
जब दिल चाहे,जहां भी धड़कन बुलाये
बस उस गोद में एक बार सोना मंजूर करो,
तेरा साथ छूटा,तुझे समझने में वक्त लगा,
तेरी आँखों की उस चमक में,खोना मंजूर करो,
उन होंठो का हिलना वो आँखों की शबनम,
जो कर सको तो ….
आँखों की शबनम में सोते का गुम जाना मंजूर करो ll