*** ” एक और ख़त के इंतजार में……..!!! ” ***
*** : कितने ख़त लिखा था मुझे , उसने…..!
मेरे अबूझ दिल को रिझाने….! ।
थे ओ शायद आशिकी के ,
अज़ब-गज़ब अफ़साने परवाने……! ।
ख़तों में लिखे हर एक शब्द के आहट….! ,
लगे थे मेरे , दरवाजे दिल के खटखटाने….! ।
ख़त में लिखा होता था….!!! ,
” एक बार कुछ कह दो न…..!! ”
” मुझे भी कुछ पढ़ लो न…..!! ”
” अनोखी-अनुपम जिंदगी की राह में,
कुछ कदम चल लो न…!! ”
” सांसों में सांस मिला….
नव-जीवन पथ को गढ़ दो न……!! ”
समझा मैंने…..उसे ,
नटखट आशिक एक आवारा …! ,
सो लग गई थी सारे के सारे ख़त , मैं जलाने…! ।
*** : ख़त का सिलसिला जारी था…..! ,
शायद ओ आशिकी की राह में ,
अनोखा मतवाला एक राही था….! ।
वक्त का पहिया चलता रहा …..! ,
दिन .. महिनों में… ,
महिनें … सालों में…., बदलता रहा….! ।
सोंचा मैंने कि…
कुछ दिनों में आशिकी पन उसका..,
उतर जायेगा…..!! ।
बाबू हरिकिशन…बावरा आवारा….! ,
कुछ संभल जायेगा……!! ।
पर…. ऐसा कुछ हुआ नहीं……! ,
मजनू का आवारगी पन रुका नहीं…..! ,
और मेरे….
दरवाजे दिल की , पट खुला नहीं…..!! ।
न मेरी कोई सहमति थी……,
और ना ही कोई आंशिक ईशारा….! ।
कह जाती थी कुछ मन ही मन….. ,
ना होगी कोई चाहत की आंशिक असर…
यदि होगा तू…..
आसमान का ….कोई अनोखा सितारा….!! ।
***: न जाने कुछ हुआ कि …
यूं ही ख़त का सिलसिला हुआ बंद…..! ,
मैं भी समझने लगी कुछ…. ,
अच्छा है बाबू हरिकिशन बावरा… ,
अब हो गया नेक अकल मंद…..!! ।
लेकिन……,
अचानक ख़त मिलना हुआ बंद……! ,
तब ना जाने ….
उसके लिखे हुए वाक्य , शब्द …,
मेरे कानों में करने लगे तंग…..!!
” एक बार कुछ कह दो न……! ” ,
मुझे भी कुछ पढ़ लो न……! ”
” जिंदगी की राह में कुछ कदम , मेरे साथ चल लो न….! ” ,
” सांसों में सांस मिला , नव-जीवन पथ को गढ़ दो न….!! ” ।
” मन वीणा के तार हिला…. ,
चाहत के कुछ सरगम सुर गुनगुना दो न……!!! ” ।
” शब्द ही नहीं इसमें…. ,
कुछ अहसासों के दरिया है …..!! ” ।
” मैंने अपने पावन एहसासों के …..!,
गुमनाम शब्दों के स्वर वर्ण को……,
संजोया और पिरोया है …..!! ”
***: मैं थी शांत और मेरी तनहाई थी परेशान…..! ,
कहाँ गया ओ आशिक ,
जो मुझ पर था मेहरबान……..!! ।
मैंने उसके गलियारों की …..,
ना जाने कितने चक्कर लगाई….
जहां उसका आशियाना था …….!
फिर भी उस बंदे की …..!
मुझे परिछाई तक नज़र नहीं आई……!! ।
शायद……!
मेरे मन में भी , चाहत की कुछ अंकुर जगी थी….! ,
इसलिए आंखों की हर पलक…..
अब उसके एक और ख़त के इंतजार कर रही थी ।
पर ……
इतने इंतजार में यह संभव नहीं हो पाया…….! ,
ओ आशिकी का आवारा …..!
फिर… नज़र नहीं आया …..!!! ।
*** : कुछ दिनों बाद दूरदर्शन पर …
ऐसा ख़बर आया……….? ,
मेरे स्तब्ध-शांत मन को……!
बहुत रूलाया……..!!!! ।
एक गांव का ” बाबू हरिकिशन…. ” ,
पाक-हिंद की लड़ाई में….. ,
देश के नाम शहिद…. हो गया है…..!! ।
पार्थिव शरीर को कल उसके गांव……,
विशेष विमान से पहुँचाया जायेगा ….!!! ।
प्रातः सात बजे …
दूसरे दिन शहिद-पार्थिव शरीर …..!!! ,
उसके घर आंगन में रखा गया था ।
गांव वालों की भारी भीड़ लगी थी……..!!
मैं भी एक कोने में स्तब्ध खड़ी थी…….!!! ।
और…….
मन ही मन तरस रही थी…….!!! ।
मेरे आग्रह-निवेदन पर ……
एक अंतिम दर्शन कराया…..!!! ,
मैंने चीख भरी …. रोती आवाज से…….! ,
उसे जकड़ती हुई गले लगाई…..!!! ।
उसके बंद मुट्ठी हाथों से हाथ मिलाई……..! ,
मुझे एक ख़त नज़र आई…….!!! ।
ख़त में लिखा था……
वही शब्दों के वाक्य……….!! ,
” एक बार कुछ कह दो न…….!!! ”
” मुझे भी कुछ पढ़ लो न………!!! ”
” अनुपम जिंदगी की राहें में कुछ कदम चल लो न ……!!! ”
” सांसों में सांस मिला , नव-जीवन पथ को गढ़ दो न……!!! ”
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छ . ग )
१३ / ०२ / २०२१