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1 Jul 2018 · 1 min read

एक और कार्य काल

पुरा होता एक और कार्य काल,
आस्था और अविश्वास के साथ,
बनता विश्वास और टूटती आस,
बीत गये चार साल।
एक सपना मतदाता का,
एक सपना,जन और जनता का,
एक सपना कार्यकर्ता का
एक सपनाअपनो का,
और एक गैरों के सपनो का,
पर क्या,सबके सपने हुए हैं पुरे,
हां,कुछके सपनो को मिल जाता है मुकाम,
पर अधिकाशं के हो जाते हैं नाकाम,
और गुजरने को यह भी कार्य काल,
यानि कि पुरा होने को है पाचं साल,
कितनो को खलते रहे ये साल,
कितने हो गये है माला-माल,
कितनो को रह जाता है मलाल।
सफलता- विफलता के साथ गुजरे ये वो साल,
लो पुरा होता एक और कार्य काल,
क्या हुआ जो वह वादे ,रह गये अधुरे या आधे,
यह तो सब करते ही है,
क्या अभितक किसी के पुरे हुए हैं,
तो यह सवाल आज ही क्यों
,तब क्यों नहीजब साल दर साल ही,
तुमने था उनको भी परखा,
हमे तो आये,हुए ही कितना वक्त है गुजरा,
जो इतनी उम्मीद हो पाले,
देखेंगे,हमे तो फिर से है आना,
तुम हमे आजमाते हो,हमें तो तुमको है आजमाना,
आओ,हम पर करो विश्वाश,
मिल कर पायेंगे हम राज,
होंगे हम कामयाब, मनको है यह विश्वाश
हम होंगे कामयाब एक दिन,
जब तुम दोगो साथ ,
या,उस दिन जब ठान ले हम यह बात,
हम होंगे कामयाब तब जब स्वयं पर होगा विश्वाश,उस दिन।

Language: Hindi
322 Views
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