एक और इंकलाब
सदियों से ज़ारी ज़ुल्म का
हिसाब इंकलाब है
चाहे कोई सवाल हो
ज़वाब इंकलाब है…
(१)
सरदार भगतसिंह और
भीमराव अंबेडकर
जिसके लिए फ़ना हुए
वो ख़्वाब इंकलाब है…
(२)
तख्त और ताज के
पैरों तले रौंदे हुए
लोगों की ज़मीर की
आवाज़ इंकलाब है…
(३)
हाथों में मशाल और
होठों पर नारे लिए
एक नए दौर का
आगाज़ इंकलाब है…
(४)
माली और शिकारी की
साजिशों के जाल में
उलझे हुए परिंदों की
परवाज़ इंकलाब है…
#गीतकार
-शेखर चंद्र मित्रा
सेवरही (कुशीनगर)
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