एक इंसान को लाइये
एक इंसान को भी लाइये
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कांक्रीट के जंगल में , कितने पत्थर जड़वाओगे
सांसे लेता हुआ आदमी भी , इस बस्ती में तो लाइये ।
मुनासिब नही हर सवाल का, जवाब तुमको मिल जाये
ऐसे हालातों में अपना सिर, दीवारों से तो मत टकराईये ।
कौन है अपना कौन पराया, खुद खुलासा हो जायेगा
एक पल के लिए ही सही , बुरा वक्त तो बुलवाइये।
जानकर भी नासमझ, दिखा रहे है आप खुद को
जागे हुए ऐसे शख्स को , अब और क्या तो जगाइये ?
भारी बोझ किताबों का ढोकर, नस्ल गुलाम हैवानों की
इंसानियत की तालीम दे ,ऐसा कोर्स भी तो पढ़ाइये।
धुआं धुआं हर तरफ हवा में, जहर भरा भरा फिज़ा में
नदी समंदर खून हो जाए, नफरत इतनी तो न फैलाइये।
दावतें उड़ाने, जाम छलकाने, कदम कदम पर मयखाना
सूखे, तरसे, प्यासे होठों को, नीर का घूंट तो पिलवाईये ।
आंसू मेरे उसकी पलकों में, उसका दर्द मेरी धड़कन में
जज्बातों की सौंधी महक, इस बस्ती में तो बिखराईये ।
एक इन्सान को भी अब इस बस्ती में तो लाईये ।
रचयिता
शेखर देशमुख
J 1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू 2, सेक्टर 78
नोएडा (UP)