एक आदर्श परिवार की संकल्पना
परिवार छोटा हो या बड़ा हो ,
हो उसमें अत्यधिक प्यार ।
हर सदस्य एक दूजे से हो जुड़ा,
हों जैसे वो एक ही दिल के तार ।
हों चाहे जैसे भी हालात जीवन में,
कंधे से कंधा मिलाए खड़े हो हर बार ।
दुख हो तो एक दूजे के आंसू पोंछे,
सुख और आनंद में हो जाएं एकसार ।
आशा और विश्वास से जुड़ा हो रिश्ता ,
करे मानवीय दुर्गुणों को अस्वीकार ।
सद्गुणों को उबारे ,कमियों को छुपाए,
एक दूजे का उत्साह बढ़ाने को रहे तैयार ।
तेरे मेरे की भावना का ना हो समावेश ,
है “हम” की भावना से भरा सुन्दर व्यवहार ।
बड़ों बुजुर्गों का हो आदर सम्मान और सेवा,
और छोटो से हो अत्यधिक प्यार व् दुलार ।
अनुशासन भी मगर प्यार के साथ जरूरी है,
जिससे संतान सीखे सभ्यता और संस्कार ।
हंसी खुशी से रहे एक दूजे का दिल बहलाए ,
हर पल को आनंद से जीतते हुए जीते वो संसार ।
यह संकल्पना कल्पना है या हकीकत जो भी है ,
गर मिल जाए ऐसा परिवार तो हो जायूं मैं बलिहार ।
मगर आदर्श परिवार बनाना कोई मुश्किल नहीं,
बस हर सदस्य को त्यागना होगा अपना अहंकार ।