एक आदमी का दर्द (हम हिंदुस्तानी,..)
ये दिल बेचारा बेइंतेहा दर्द सहता है ,
यह ज़हन अनेकों फिक्रों में लगा रहता है ।
घर पर रहे तो घरवालों से खट पट ,
तो कभी उनकी शिक्षा/सेहद की सोचता है ।
दफ्तर पर रहे तो बॉस से तनातनी ,
और सहकर्मियों के कुटिल व्यवहार सहता है।
दोस्तों के बीच रहे तो उनके उलाहने और ,
उनको सुखी देख निज कमी का दुख सालता है।
बाज़ार में राशन या हाट में सब्जी लेने जाए,
राशन और सब्जियों के भाव सुनकर सकपकाता है।
और कभी दिल बहलाने को देखना चाहे टीवी तो ,
पत्रकारों / नेताओं की परस्पर तर्रार से सरदर्द होता है।
खबरें सुन अपराधों ,आपदाएं और महामारी के प्रकोप की ,
दिल बेचारा दहशत से कांप उठता है ।
सरकार को क्या पता आम आदमी कैसे जीता है?
चुनाव के मौसम में क्यों वो तिलमिलाता है ।
कभी कभी जब सोचता है जीवन के विषय में,
वो उसे तनाव और फिक्र का प्रायवाची लगता है ।
आशा और निराशा के बीच तमन्नाओं को साथ लेकर ,
वो अपना जीवन इसी तरह गुजारता है।