एक आंसू
मेरी आंख की दहलीज़ पर,
की बरसों से ,
रखा है इक आंसू ।
शायद वो जम ही गया होगा
जो बह कर मेरे गालों तक
नहीं आ पाया कभी।
या फिर
लोग क्या कहेंगे इस डर से
रूका हैं वहीं
या हो सकता है वो
किसी ऐसे दामन के इंतजार में हैं
जो थाम ले उसे टूटने से ,
बिखरने से
या शायद उसे तलाश हो
एक सीप की जिसमें रह कर
पूरा वजूद ही बदल जायेगा उसका
बन जायेगा
वो एक मोती
चमकता हुआ
शायद
हां शायद!!!!
सुरिंदर कौर