एक अमाल मुसीबत टाल भी सकता हैं एक गुनाह मुसिबत में डाल भी सकता हैं
एक अमाल मुसीबत टाल भी सकता हैं
एक गुनाह मुसिबत में डाल भी सकता हैं
पढ़ा करो नबी-ऐ-पाक पर दुरुदो सलाम
ये अज़ाब-ऐ-आग से निकाल भी सकता है
चिढ़ियो से कहो ज़रा होशियार हो कर उड़े
जंगल का शिकारी फ़ेक जाल भी सकता हैं
दोस्तों से तो उम्मीद रही नहीं हाँ मगर
दुश्मन ज़रूर पुछ हाल चाल भी सकता हैं
कई हिज़रते करी हैं अब हम से न कहो
मैं मर्दे मुज़ाहिद हूँ हो बवाल भी सकता हैं
जल्दी से जली बाप की लाशे हटा लो यहाँ से
वरना अदालत का बेटो से सवाल हो भी सकता है
हमारे घर मिलेगा मगर रिज़्के हलाले मिलेगा ‘अहमद’
हाँ दस्तरखान पर चटनी रोटी दाल हो भी सकता है