एक अनोखा सच
तन्हा बैठी थी एक दिन मैं अपने मकान में,
चिड़िया बना रही थी घोसला रोशनदान में।
पल भर में आती थी पल भर में जाती थी
छोटे छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो।
बना रही थी वो अपना घर एक न्यारा
कोई तिनका था , ना कोई ईंट गारा।
कुछ दिन बाद मौसम बदला, हवा के झोंके आने लगे,
नन्हे से दो बच्चे घोसले में चहचहाने लगे।
पाल रही थी चिड़िया उन्हें,पंख निकल रहे थे दोनों के,
पैरों पर करती थी खड़ा उन्हें।।
देखती थी मैं हर रोज उन्हें, जज़्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए, पंख निकलने पर दोनों बच्चे ,
मां को छोड़ अकेला उड़ गए ।।
चिड़िया से पूछा मैंने …….तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए, तू तो थी मां उनकी
फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए ।।
चिड़िया बोली …….परिंदे और इंसान के बच्चे में यही तो फर्क है, इंसान का बच्चा …….पैदा होते ही अपना हक जमाता है, न मिलने पर वो मां बाप को……कोर्ट कचहरी तक ले जाता है। मैंने बच्चों को जन्म दिया,
पर करता मुझे कोई याद नहीं, मेरे बच्चे क्यों रहेंगे साथ मेरे , क्योंकि मेरी कोई जायदाद नहीं……
✍️✍️रश्मि गुप्ता @ Ray’s Gupta