एक अंधकार -कोरोना 2
एक अंधकार जैसा फिर छा रहा है।।
हृदय में भय मंडरा रहा है
वैसे तो अब तक सब ठीक है
पर फिर भी ना जाने क्यों कोई दुख सता रहा है
एक अंधकार जैसा फिर छा रहा है।।
यह मंजर जब से चले जा रहा है
कुछ भी बेहतर ना हो पा रहा है
शिक्षा का तो आलम बेकार हुआ
मानव संसाधन भी खतरे में नजर आ रहा है
एक अंधकार जैसा फिर छा रहा है।।
माना हमारे अपने सब सलामत है
पर वह भी किसी के अपने हैं जिनका जनाजा जा रहा है
आज उन जनाजे पर मुझे रोना आ रहा है
धन पहचान सोना चांदी सब बेकार नजर आ रहा है
अब एक पॉजिटिव रिपोर्ट आने पर जन-जन से भागा जा रहा है
एक अंधकार जैसा फिर छा रहा है।।
ना लॉकडाउन काम आया न
मास्क-सैनिटाइजर काम आ रहा है
घर में बैठे-बैठे बिना परीक्षा के बच्चों का रिजल्ट आ रहा है
इसके आगे तो वैक्सीन और विज्ञान भी पिछडता जा रहा है
एक अंधकार जैसा फिर छा रहा है।।
भारत ही क्या पूरा विश्व ही धसता जा रहा है
भारत की अर्थव्यवस्था को कोरोना खा रहा है
एक अंधकार जैसा फिर छा रहा है