एक अंजानी,अपनी सी।
है नहीं वो कोई मेरा,
अक्सर देखूं एक मासूम चेहरा,
कह न सकूंगा कुछ भी उस से,
लगा मुझ पे मर्यादाओं का पहरा,
लगता नहीं मै कोई उसका,
वो भी मुझसे है अंजान,
जाने क्यों दिल कहता मेरा,
है वो एक अच्छी इंसान,
सामने से आते देख उसे,
मन ही मन मै मुस्काता,
उसकी ख़ुशी की दुआ मै करता,
इज़्ज़त से अपनी नज़रे झुकाता,
जाने क्यों लगता है मुझको,
मेरे जीवन में उसकी अहमियत है,
मेरी आँखों में मेरे सपनो के साथ,
मौजूद उसकी मासूमियत है,
हूर की परी तो नहीं है वो,
पर लगती मुझको अच्छी है,
कितना अच्छा दिल होगा उसका,
जिसकी मुस्कान इतनी अच्छी है l
कवि-अम्बर श्रीवास्तव