एक्सेप्ट करो, एक्सपेक्ट नहीं
एक्सेप्ट करो,
एक्सपेक्ट नहीं
दुनिया बहुत ही सुंदर है
मत उम्मीदों में बर्बाद करो
दिल से आबाद करो
क्यों खुद के जैसा बनाने पे तुले हो
खुद को ही क्यों परफेक्ट कहते हो
काम मेरी तरह करें, सफ़ाई मेरी तरह
ना मुझ से कम ना मुझ से ज़्यादा
इंसान न हुआ, हो गया हो पयादा
हाथ की उंगलियां तक
एक जैसी नहीं हुआ करती
गर हो गई तू काम न कर पाएगां
रोटी तक तोड़ के तू न खा पाएगां
खूबसूरती भिन्नता में हैं इसे काबूल कर
अपने जैसा बनाने की न भूल कर
खुद का बश खुद पे तो चलता नहीं
हाथ तेरा खुद के वश में तो रहता नहीं
जबान तेरी कहीं भी चल जाती हैं
दूसरे की लेता तू जवाबदारी हैं
मत उम्मीदों के घड़े भर
एक दिन ये फूट जायेंगे
और तेरे हिस्से आंसू के सिवा
कुछ भी न आयेंगे….. ।।।।
दीपाली कालरा