“एको देवः केशवो वा शिवो वा एकं मित्रं भूपतिर्वा यतिर्वा ।
“एको देवः केशवो वा शिवो वा एकं मित्रं भूपतिर्वा यतिर्वा ।
एको वासः पत्तने वा वने वा एका नारी सुन्दरी वा दरी वा ।।”
एक ही देव को ग्रहण करना चाहिए, वे केशव हों या शिव, एक ही मित्र बनाना चाहिए, राजा हो या तपस्वी, एक ही जगह वास करना चाहिए, नगर हो या वन और एक ही सुन्दरी से प्रीति हो या कन्दरा से । द्वैध भाव से मनुष्य का कल्याण सम्भव नहीं है, इसलिए निश्चयपूर्वक एक ही प्रकार का मार्ग अपनाना चाहिए ।
— भर्तृहरि ( नीतिशतक )