एकादश दोहे:
सिर्फ मलाई मारकर, जन्नत की हो सैर.
दूध सभी को चाहिये, गायों से है बैर..
गायें भूखी घूमतीं, संकट में है जान.
चारा भूसा गाय का, खा जाते इंसान..
कम्बाइन काटे फसल, भूसा पूछे कौन.
नरवाई देते जला, समझा दें क्यों मौन??
नरवाई को मत जला, सूक्ष्म जीव हों नष्ट.
उसका भूसा लें बना, त्वरित दूर हों कष्ट..
गीले रहते हैं सदा, नहर नदी तटबंध.
बीज घास के बोइये, यही उचित अनुबंध..
गोबर ईंधन खाद के, अपनायें नव सूत्र.
दूर करे मधुमेह तक, रामबाण गोमूत्र..
नित्य कटें चोरी छिपे, देखे मौन समाज.
सबकी आँखों में चुभें, देशी गायें आज..
रोग कैंसर का जनक, हो सकता गोमांस,
इसका सेवन जो करे, घिसटे कर ब्रेकडांस.
पालीथिन क्यों बिक रही? किससे क्या संबंध?
जनता का ही दोष सब? कहाँ गए प्रतिबन्ध??
सत्ता की मदिरा पिए, सोता है परमार्थ.
होता है तुष्टीकरण, यदि वोटों का स्वार्थ..
आज कठिन है मान्यवर, गोसेवा का काम.
गोरक्षक की भर्त्सना, करिये होगा नाम..
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’