एकाकीपन
संबंधों की डाल पर, टाँके थे जो फूल।
समय बदलते ही सभी,आज बने हैं शूल।।
झूठा आडंबर रचे,सारे रिश्तेदार।
छल-प्रपंच से था भरा,उनका हर व्यवहार।।
छुरा भोंककर पीठ में,तोड़ दिया विश्वास।
सबसे विरक्ति हो गई,रहा न कोई खास।।
हूँ अपनों के भीड़ में,तनहा खड़ी उदास।
रिश्ते-नाते प्यार सब,मुझे न आये रास।।
घंटों-घंटों बैठती,बिलकुल ही एकांत।
सहलाती-पुचकारती,करूँ दर्द को शांत।।
चलते-रुकते-भागते,अंतस के हर भाव।
खुद-से-खुद होने लगा,मुझको तनिक लगाव।।
एकाकी संगीत बन,उर में लिया पनाह।
नाच उठा मन बावरा,मिटे दर्द औ’ आह।।
सुखद-शांति का मिल गया,सहज-सत्य की राह।
अब पूरी करने लगी,अपनी सारी चाह।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली