एकांत में बैठकर ___ कविता
एकांत में बैठकर _
अपने गुण अवगुण पर चिंतन कीजिए।
मुखोटे लगाकर घूमते हैं लोग बाजारों में,
अपना व्यवहार ऐसा न रहने दीजिए।।
झूठी आन बान शान में जीना कोई जीना नहीं।
यथार्थ को भी तो कभी सहन कीजिए।।
बोलना ही जरूरी हो तो मुंह खोलिए।
जबां को कभी मोन भी रहने दीजिए।।
राजेश व्यास अनुनय