एकांतवास ( कोरोनाकाल के परिप्रेक्ष्य में )
अकेला हूँ……
किसी अनचाहे भय (कोरोना) से
बंद कमरे में उन्मुक्त पड़ा हूँ।
अलसायी सुबह…
सुनसान जिंदगी…
न भीड़ न कोलाहल…
बस दूर रहकर …
बोझिल मन से…
इंसान से इंसान की…
अपृश्यता का…
संदेश सुन रहा हूँ।
अब तो बस ..
देखता हूँ…
टकटकी निगाहों से…
अपने टूटे से झरोखे पे…
फुर्र से आकर…
बैठी प्यारी सी…
भूरे पंखवाली नन्ही सी …
निडर चिड़िया को।
बंद कोठरी में देख …
वो अक्सर पूछती है …
मेरे दोस्त!
मेरी तरह तुम कब उन्मुक्त होगे..
कब उड़ोगे …
खुले आसमान में…
मैं मन ही मन मुस्काता हूँ…
फिर उसे बताता हूँ …
मेरी नन्ही दोस्त!
यदि आज इस घोसले में
छुप गया …
तो खुशी से भरी दुनिया …
मेरी होगी।
यदि आज ठहर गया….
तो कल की सतत रफ्तार
मेरी होगी।
बस…..
बंद रहने दो
मुझे मेरे आशियाने में।
क्योंकि इसी मंदिर में…
मैं अपनों से दूर रहते हुए भी…
अपनों के लिए…
भविष्य के सुनहले सपने…
बुन रहा हूँ।
(पुणे में वर्ष 2020 में…बड़े बेटे सत्यम को समर्पित)
––——कुमार राजीव (अप्पू)