एकलता : विघटित होती मानवता
संयुक्त परिवार समाज की मजबूत इकाई है |
आजकल अकसर लोगो को कहते सुना है कि पुराना वक़्त बेहद शानदार हुआ करता था | एकल परिवार ने -परिवार के सदस्यो के साथ समाज को भी विभाजित किया है | एकल परिवार ने अनेक समस्याओ को न्योता दिया है जैसे बच्चों मे पनपती हिंसात्मकता, महिलाओं का शोषण, बुजुर्गो की दुर्गति,निजी रिश्तो में बैरपन,अबोधता में अपराध, पति पत्नि के खटासपूर्ण सम्बन्ध और ना जाने कितनी असिमित बुराइयाँ | विघटित होते परिवारो ने लोगो के मानसिक और नैतिक विचारों में जबर्दस्त परिवर्तन किया है | समय कुछ इस तीव्र गति से व्यतीत हो रहा है मानो कि एकल परिवार का भी अस्तित्व नहीं रहेगा | एकल परिवार मे तीन चार लोगो की आपस की विचारधारा मे जरा भी समानता नहीं है | पति मुंबई नौकरी करता है तो पत्नि दिल्ली और बच्चे विदेश या अन्य शहर में अध्ययन या कोई पेशा कर रहे है | एक दो साल मे ये तीन चार लोग एक दुसरे से रुबरु होते है, फ़ोटोग्राफ़ खींचते है और फ़िर अपनी अपनी राह पकड़ लेते है | आधुनिकता की इस अन्धी दौड़ में लोग अतीत के स्वर्ण युग की बाट कैसे जोह रहे है? एकल परिवार मे रहने के बावजूद आपस में
नामभर बात करते है तथा सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते हैं | प्रत्येक व्यक्ती खुद की अभिव्यक्ति, अज़ादी, सपने, रहन सहन में रहना चाहता हैं | यह कहना अतिशोयोक्ति नहीं होगा कि एकल परिवार मे दो व्यक्तियो की विचारधारा में मात्र क्षण भर की समानता हैं | उपर्युक्त विषयो पर सोचने के पश्यात संयुक्त परिवार मे वापसी जैसे रेगिस्तान में ओलों की वर्षा | मनुष्य को स्वतः ही ह्रदय को झकझोरना होगा कि आखिर एेसे एकलता के गर्त मे कब तक?परिवार के सदस्यों की संवेदनशीलता को किस तरह जाग्रत किया जाय? कैसे आज की पीढ़ी में परिवार प्रेम, संयुक्त परिवारता, संस्कार, बुजुर्गो का सम्मान, नैतिकता और सबसे जरूरी मानवता के बीज किस तरह बोये जाय?
युक्ति वार्ष्णेय “सरला”
मुरादाबाद