एकतरफा ईश्क़
दिन याद है वो जब तेरा दीदार हुआ था।
बस देखते ही मुझको तुमसे प्यार हुआ था।
तुमने नज़र झुका लिए थे मिलते ही नज़र-
बोले बिना ही ईश्क का इज़हार हुआ था।
तुम चौदहवीं का चांँद थी मैं सोलहवांँ सावन।
बाली उमर का प्यार था अपना अति पावन।
जोड़ी हमारी राधा-श्याम जैसी सजीली-
था प्रीत में तुम्हारी बना मन मेरा मधुवन।
दिल में बसा के हमने तेरा चेहरा किताबी।
भेजे थे लिफाफे में तुम्हें ख़त जो गुलाबी।
हम इंतज़ार करते ही रहे जवाब का –
आया नहीं कभी भी मगर ख़त वो जवाबी।
ताउम्र मुकद्दर से रहेगा हमें गिला।
क्यों प्यार तुम्हारा मेरे हमदम नहीं मिला।
हम आज भी तड़पते हैं यादों में तुम्हारी-
एकतरफा ईश्क़ का हमें अच्छा मिला सिला।
रिपुदमन झा ‘पिनाकी’
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक