* ऋतुराज *
** घनाक्षरी **
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ऋतुराज की चमक है बढ़ी सभी जगह,
खूब निखरे समग्र दृश्य हर ओर हैं।
टहनियों में कोंपलें खूब जब भरी हुई,
प्रकृति के खिल गये एक एक छोर हैं।
खूब लगता सभी को राग है बसंत प्रिय।
हर दिशा प्रभामयी स्वर्णिम सुभोर है।
मन में जगा है स्नेह बोझिल हुए नयन,
झंकृत हुआ हृदय झूमे मन मोर है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १९/०३/२०२४