“ऋणानुबंधन”
जीवन के सफरमें बंध जायेंगे कई बंधन…!
निभालो नाजुक संबंध, कर्मों का हैं ऋणानुबंधन…!!
जन्मों का पुराणा नाता, इसे न तुम ठुकराव….!
कुछ तो होंगा इसमें ‘राज’ तभी तो हैं सब साथ…!!
अचानक से होता हैं मिलाप,
ईश्वरने रचाया ऐ आलाप…!!
बातों से होता हैं संगम, फिर बंधता रिश्ता खास…!
क़ुदरत का ईशारा हैं मंजूरी भी उसकी हैं…!!
न करो तूम रुआब, मानवता को करलो याद…!
सच्चा संबध इंसानियत का हैं, समझलो तमाम…!!