ऊपज
धरा निपजे सोना धन, धान्य सदाबहार,
हंसा तो मोती चुगे पाश संग खरपतवार,
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नहीं साधना नेता की,खाती बगुले से मेल
बगुले का श्वेत रंग,नेता करते नाहक खेल
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ढपली बजने की है बहुत पुरानी रीत,
सुन मंत्र मुग्ध हुए,वो जान मिले मीत,
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वीणा कश मीराबाई नाचती सर्वस्व त्याग
छलिया छल गये ब्रह्म चरण राग आलाप
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महिमा तेरी आपनी, मालूम कतई नहीं,
बाहर था तू बाहर ही कोय मुक्ति नाहीं.
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व्यवस्था के नाम पर निर्धारित सब रेट,
आम आदमी चढे सब व्यवस्था के भेट.
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संविदा इजाजत देता नहीं वोट में हो खोट,
एक गुप्त मतदान कारणे, लगे गहरी चोट,
हंस महेन्द्र सिंह