ऊँट है नाम मेरा
पीठ पर कूबड़ है,
नाक में नथ है।
कोई न चल पाये जहां
वह रेत मेरा पथ है।
बिन पानी के भी
करता सब काज हूँ।
ऊंट है नाम मेरा
मरु का जहाज हूँ।
सैनिक हूँ सरदार हूँ,
सरहद का पहरेदार हूँ।
निगरानी से मैं न डरता,
दिन रात चौकसी करता
शरीर से टेढ़ा मेढा मगर
फुर्ती में बाज़ हूँ,
ऊंट है नाम मेरा
मरु का जहाज हूँ।
गाड़ी में चल जाता हूं,
पानी भरके लाता हूँ।
किसानों के काम आता,
लोगों को सवारी करवाता।
सरपट भागने में
न करता लिहाज हूँ।
ऊंट है नाम मेरा
मरु का जहाज हूँ।
मेरी एक आँख में तीन पलक हैं,
ईश्वर रचना की अजब झलक हैं।
काम करने से होता नहीं क्लांत हूँ,
मानव का मित्र स्वभाव से शान्त हूँ।
गर्दन ऊंची करके चलता,
किसी से नहीं नाराज हूँ।
ऊंट है नाम मेरा
रेत का जहाज हूँ।
सतीश शर्मा सृजन, लखनऊ.