ऊँचा नीचा
समाज को तोड़ने का
गुनाह करते हो।
कमजोरों की जिंदगी
तबाह करते हो।
खुद को ऊंचा
उन्हें नीचा बताते हो,
फिर सम्मान की
सबसे चाह करते हो।
कभी पूरा न होगा
अरमान तुम्हारा,
कोशिशें अनगिनत
ख़्वाहमख्वाह करते हो।
क्यों उनकी तकलीफों पे
खुश होते हो
उनकी खुशियों पे क्यों
आह भरते हो।
निजी स्वार्थ में तुम
अंधे हुए हो,
आँख बालों को
गुमराह करते हो।
संजय नारायण