उस मुसाफिर से पता
उस मुसाफिर से पता उसका पूँछना था तुझे
ऐ मेरे दिल यूँ तकल्लुफ में न रहना था तुझे
वो जो मुलाकात से पहले कभी मिला न था
जाने क्यूं वो अजनबी अपना सा लगा मुझे
तेरा पता पूँछ रही थी वो आँखें बारहा
ऐ दिले नादान चश्म-ए-खामोशी समझना था तुझे
रात भर दिल की अहमकी पर मै हँसता रहा
मुझको तड़पना था और यूँ ही रोना था तुझे