अस्मिता
उस दिन शहर के चौराहे पर गधों जमघट था ,
शायद उनका कोई सम्मेलन था ,
उनमें से एक बड़ा सा गधा जो उनका नेता था, ने भाषण देना शुरू किया :
भाइयों और बहनों ! हमने आदमी की गुलामी बहुत सहन कर ली है ! अब हम अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष करेंगे ! अभी तक हमें मूर्ख कहकर बहुत बदनाम किया है ,अब हम आदमी कितना भ्रष्ट और स्वार्थी है ! यह सिद्ध करके रहेंगे !
आदमी अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए नेताओं की चाटुकारिता करने एवं पिछलग्गूपन के लिए मशहूर हो चुका है।
सामाजिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार जहर की तरह फैल चुका है।
अनपढ़ बुद्धिहीन लोग शासन कर रहे हैं और प्रज्ञाशील प्रबुद्ध लोगों पर भारी पड़ रहे हैं।
राजनेता लोगों को बरगला कर धर्म एवं जाति के आधार पर चुनावी वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार का मूल भ्रष्ट राजनीतिज्ञ ही हैं ,
जिनके भ्रष्ट आचरण से वे जनता को भ्रष्ट होने का प्रोत्साहन दे रहे हैं।
शासन तंत्र के पदाधिकारियों में भी भ्रष्टाचार, इन भ्रष्ट नेताओं की ही देन है , जो अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए पदाधिकारियों को भ्रष्ट आचरण के लिए प्रेरित करते रहते हैं।
न्यायिक प्रक्रिया मे भी भेदभाव की नीति अपनायी जाती है , उच्च वर्ग एवं रसूख वालों को शीघ्र फैसले की सुविधा दी जाती है ।
जबकि आम आदमी के लिए न्याय प्रक्रिया एक जटिल एवं विलंबित बन गई है ,और उसे बरसों न्यायालयों के चक्कर काटते भटकते रहना पड़ता है।
देश के कारागृह विचाराधीन कैदियों से भरे
पड़े हुए हैं, जिनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है।
यह अत्यंत गंभीर विषय है कि न्यायाधीशों में भ्रष्टाचार के कुछ प्रकरण सामने आए हैं ।
जिसमें किसी व्यक्ति विशेष के हित में पहले से निर्धारित नीति से प्रभावित होकर फैसले लिए गए हैं।
अपराधियों की सांठगांठ पुलिस एवं नेताओं से होने के कारण उनके हौसले बढ़े हुए हैं।
उनके विरुद्ध न्यायालयों में सैकड़ों प्रकरण लंबित है, परंतु वे खुले आम जनता पर अत्याचार कर अपना वर्चस्व कायम किए हुए हैं। राजनीतिक पार्टियों का वरदहस्त उन पर होने एवं अपने बाहुबल के आधार पर कुछ तो नेता बन विधानसभा एवं संसद की शोभा बढ़ा रहे हैं।
आम आदमी दबा छुपा अस्तित्वविहीन घुटन सी महसूस कर रहा है। यदि वह प्रशासन के विरुद्ध आवाज उठाता है ,एवं जन आंदोलन की अलख जगाता है , तो भ्रष्ट नेताओं द्वारा उसे झूठे प्रकरणों में फंसाकर प्रताड़ित कर उसकी आवाज को दबा दिया जाता है।
असामाजिक तत्व, पुलिस, एवं नेताओं का त्रिकोणी समीकरण देश के लोकतंत्र को दूषित कर रहा है। और आम आदमी इस त्रासदी का भुक्तभोगी मूकदर्शक बना हुआ है।
नेताओं में राष्ट्रीयता की भावना का पतन हुआ है , एवं लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन हुआ है।
राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश में अस्थिरता लाने के उद्देश्य से विदेशों में जाकर देश के संविधान , नीतियों, शासन व्यवस्था एवं न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठाकर देश को बदनाम कर ,
विदेशी ताकतों से देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप की अपेक्षा करना विपक्षी दलों के कुत्सित मंतव्यों का प्रतीक है।
देश में महंगाई एवं बेरोजगारी निरंतर बढ़ती जा रही है। शासन द्वारा महंगाई को कम करने के कोई सकारात्मक प्रयास दृष्टिगोचर नहीं होते हैं।
बेरोजगारी खत्म करने के लिए लुभावने वायदे एवं योजनाएं घोषित की जाती है , जिनका प्रमुख उद्देश्य आगामी चुनाव की लोक लुभावनी रणनीति है , जिसमें लोकहित की संभावना लेशमात्र भी नही होतीे है।
गधों के नेता ने आगे घोषित करते हुए कहा अब हम आदमी के गुलाम बनकर कदापि नही रहेंगे , हम भी अपने स्वतंत्र अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करेंगे और हमारे ऊपर होने वाले अत्याचार के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद करके रहेंगे।
जिसका सभी गधों ने समवेत स्वर में ढेंचूँ – ढेंचूँ करते हुए अनुमोदन किया।
शहर के चौराहे पर गधों की भीड़ के कारण यातायात बाधित हो रहा था, एवं जाम की स्थिति निर्मित
हो गई थी, इसलिए ट्रैफिक पुलिस ने डंडे मारकर गधों को वहां से भगाना चालू किया ,
परंतु गधे टस से मस ना हुए और ढेंचूँ -ढेंचूँ करते रहे। कुछेक गधों ने दुलत्ती मारकर पुलिस वालों को घायल भी कर दिया।
पुलिस समझ नहीं पा रही थी कि आज
इन गधों को क्या हो गया है , जो इस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं।
थक- हार कर पुलिस ने नगर निगम की जानवर गाड़ी बुलवाकर, उन सभी गधों को उनके नेता समेत गिरफ्तार कर जबरन गाड़ी में भरा और रवाना किया और बिगड़ती यातायात व्यवस्था को बमुश्किल नियंत्रित किया।
गधे अंत तक ढेंचूँ – ढेंचूँ करते रहे जैसे प्रशासन के विरुद्ध अपना रोष प्रकट रहें हों।