उस गुरु के प्रति ही श्रद्धानत होना चाहिए जो अंधकार से लड़ना सिखाता है
पर्व ‘गुरु पूर्णिमा’ ऐसे सच्चे गुरुओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने वाला दिन है, जिन्होंने धर्म के रथ पर सवार होकर श्री कृष्ण की तरह अर्जुन रूपी जनता से सामाजिक बुराइयों, विसंगितियों, भेदभाव, छूआछूत और अत्याचार से लड़ने के लिए युग-युग से शंखनाद कराया है और अब भी समय-समय पर अपने पावन वचनों से जन-जन में अमिट ऊर्जा का संचार करते रहते हैं।
कबीरदास का कहना है कि ‘गुरु के समान कोई भी अन्य प्राणी इस संसार में हितैषी, मंगल करने वाला और सगा नहीं हो सकता। गुरु का गौरव अनंत और अवर्णनीय है। वह मनुष्य के अगणित चक्षुओं को खोल देता है और सही अर्थों में परमात्मा के दर्शन कराता है। सदगुरु के हाथ में शिक्षा का अग्निवाण होता है जिसको वह समय-समय पर छोड़ कर पाप के प्रत्यूह को जलाता है। गुरु ही मनुष्य के कठोर हृदय को सहज और सरल बनाता है।
लगभग एक हजार व्यक्तियों को क्रूरता से मारकर और उनकी अंगुलियों को काटकर उन्हें गले में माला की तरह पहनने वाले कुख्यात डाकू अंगुलि माल को गौतम बुद्ध ने जिस प्रकार अधर्म के मार्ग पर चलने से रोककर सच्चे धर्म की ओर अन्मुख किया, यह कार्य सच्चे गुरु के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता था।
गुरु विश्वामित्र के सानिध्य और शिक्षा का ही परिणाम था कि श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में समाज के सम्मुख एक आदर्शवादी चरित्र बनकर उभरे और अमरता को प्राप्त हुए।
स्वामी दयानंद और उनके शिष्य श्रद्धानंद तथा समर्थ गुरु रामदास, स्वामी विवेकनंद, संत रविदास, महात्मा फुले आदि ने दलितों, दरिद्रों, असहायों, पीडि़तों में जिस प्रकार नवचेतना और अभूतपूर्व शक्ति का संचार किया, यह महानकार्य गुरु के अलावा कोई नहीं कर सकता।
अंग्रेजों की दासता के काल में स्वतंत्रता संग्राम के अनेक महानायकों का तैयार करने में गुरुओं का योगदान कम करने नहीं आका जा सकता।
भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान परमात्मा से भी बड़ा और ऊंचा इसलिये माना गया है क्योंकि गुरु के ज्ञान के ही द्वारा मनुष्य प्रथम सांसारिक और बाद में कैवल्य का बोध ही प्राप्त नहीं करता बल्कि समस्त प्रकार की बुराइयों से जूझते हुए जीवन को सार्थक बनाता है। गुरु वह ज्ञान प्रदान कराता है जिससे मनुष्य कठोर स्वभाव को त्याग, वासनाओं, विचारों, प्रवृत्तियों के उद्वेलन से मुक्त होकर शांत, मोहविहीन, निर्लिप्त जीवन जीने लगता है। गुरु के द्वारा मनुष्य के भीतर एक ऐसा प्रकाश जगता है, जिसमें पूरा संसार उसकी चेतना के रागात्मक विस्तार में स्थान पाने लगता है।
गुरु ‘वसुधैव कुटुम्बकुम’ की भावना का दूसरा नाम है। गुरु भगवान का सेवक होता है इसलिये गुरु द्वारा प्रवृत्त शास्त्र भी गुरु हैं। सिख धर्म में भी दस गुरु साहेबान हुए हैं। सिखों के आदि अवतार देवगुरु नानक ने मन को कागज बतलाया है और कर्म को स्याही। उनका कहना है कि पुण्य और पाप इस पर लिखे लेख हैं। मुनष्य को कागज पर लिखे पुण्य के लेख को ही विस्तार देना है और पाप के लेख को मिटाना है।
प्रथम गुरु नानक देव से लेकर सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह तक का काल सभ्यता के उत्पीड़न का काल था। हिन्दू-मुसलमानों के मतभेद सभ्यता में छेद कर रहे थे। नानक ने उपदेश दिया-‘‘ दया को मस्जिद जानो, उसमें सच्चाई का फर्श बिछाओ, न्याय को कुरान जानो, नम्रता को सुन्नत जानो, सौजन्य को रोजा जानो, तब तुम मुसलमान कहलाने के हकदार होंगे। इसी प्रकार हिन्दुओं से नानक ने कहा-‘ मैंने चारों वेद पढ़े हैं, अड़सठ तीर्थ स्थानों पर स्नान किया है, तपस्वियों से मिला हूं और इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि जो मनुष्य बुरे काम नहीं करता, अपने मन में भेदभाव नहीं लाता वही सच्चा भक्त व सच्चा पुरुष है।
गुरुनानक की तरह गुरु अंगद देव, गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु अर्जुनदेव ने भी गुरु द्वारा प्रदत्त मार्ग पर चलते हुए लोक कल्याण किया।
गुरु हर गोविन्द सिंह ने मात्र जनता को सद् उपदेश ही नहीं दिये बल्कि अत्चाचारी मुगल बादशाहों से युद्ध करके जनता को मुक्त कराते रहे। बादशाह जहांगीर की कैद से 52 राजाओं को मुक्त कराया। गुरु हर गोविन्द सिंह का तो स्पष्ट कहना था कि अत्याचार के विरोध में कंठी-माला की बजाय जनता तलवारें धारण करें।
सिखों के नवें गुरु तेगबहादुर ने तो कश्मीरी पंडितों तथा हिन्दुओं की रक्षा हेतु दिल्ली में अपने प्राणों का बलिदान दिया। सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जिन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी, वीरतापूर्वक मुगलों से लोहा लेते रहे। गुरुजी के इस धर्म युद्ध में उनके चार पुत्र भी वीर गति को प्राप्त हुए।
भारतवर्ष में गुरु और शिष्य की परम्परा अत्यंत प्राचीन है। गुरु और शिष्य के मध्य प्रगाढ़ आस्था को व्यक्त करने वाले गुरु पूर्णिमा पर्व की महत्ता इसी अर्थ में है कि इस दिन हम उस गुरु के प्रति श्रद्धानत हों जो अंधकार से लड़ना सिखाता है और ईश्वर से मिलन के रास्ते सुझाता है।
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रमेशराज,सम्पर्क-15/109, ईसानगर, अलीगढ़