” उस्ताद अमज़द अली खाँ साहब “
पहला अनुभव / प्रथम आकर्षक ( संस्मरण )
जब छोटे थे तो लड़कियों के विवाह की बाते बड़ी आम हुआ करती थीं , आज के समय में बिना लड़की से पूछे आब बात तक नही कर सकते हैं । मेरी बहन मुझसे साढ़े आठ साल बड़ी है उस वक्त अम्माँ को दीदी की शादी की बात करते सुन लिया तो मुझे लगा की अगर दीदी की शादी होगी तो मेरी भी होगी और मेरी होगी तो मैं किससे शादी करुँगीं ? बहुत सोचा लेकिन छोटे दिमाग में कुछ समझ नही आया और बात आई – गई हो गई , एक दिन किसी मैगजीन में मैने ” उस्ताद अमज़द अली खाँ साहब ” की फोटो देखी उनके उपर आर्टीकल था उसमें लेकिन आर्टीकल में क्या लिखा है उससे क्या लेना – देना मुझे , मुझे तो बस उनका चेहरा इतना अच्छा लगा की मैने उसी वक्त मन में सोच लिया की अगर विवाह करूँगीं तो इन्हीं से करूँगीं । थोड़ी बड़ी हुई खाँ साहब के विषय में पढ़ती रहती थी उसी से पता चला की ये तो शादीशुदा हैं बहुत दुख हुआ मेरा पहला क्रश थे और आज भी हैं , कुछ साल पहले जब उनको अपने दोनों बेटों के साथ सरोद बजाते देखा उनका सौम्य चेहरा , बेहद मृदु स्वभाव और गंभीर व्यक्तित्व के स्वामी वाकई अपनेआप में एक शानदार शख्सियत जैसा पढ़ा सामने से भी वैसा ही पाया , मुझे आज भी बहुत अच्छा लगता है की मेरा पहला आकर्षक ” उस्ताद अमज़द अली खाँ साहब ” थे ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 13/10/2020 )