उसे अच्छा नहीं लगता
मैं जब आँसू बहाता हूँ उसे अच्छा नहीं लगता
ग़ज़ल में दर्द गाता हूँ उसे अच्छा नहीं लगता
उसे ख्वाहिश नहीं मैं जंग जीतूँ वास्ते उसके
मगर जब सर झुकाता हूँ उसे अच्छा नहीं लगता
किसी से बात करने को मना हरगिज नहीं करती
मगर जब मुस्कुराता हूँ उसे अच्छा नहीं लगता
यूँ तो हँस कर के सह लेती है मेरी हर शरारत वो
मगर जब दिल दुखाता हूँ उसे अच्छा नहीं लगता
हमेशा पूछती रहती है कितना प्यार करते हो
मैं जितना भी बताता हूँ उसे अच्छा नहीं लगता
किया करती है मुझ पर चोट जालिम जिंदगी मेरी
मगर जब टूट जाता हूँ उसे अच्छा नहीं लगता
कि सच सुनकर झगड़ लेना उसे मंजूर है लेकिन
मैं जब बातें बनाता हूँ उसे अच्छा नहीं लगता
वो मुझको रोक देती है सदा नजदीक आने से
मगर जब दूर जाता हूँ उसे अच्छा नहीं लगता