“उसने मुझे बख़्श दिया”
आज नए ऑफिस में शिवानी का पहला दिन है। साड़ी की प्लीट्स ठीक करते हुए, आईने के सामने ख़ुद को एक दौड़ती सी निगाह से निहारकर वह ऑफिस के लिए निकल पड़ी। नया ऑफिस, नये लोग, नया माहौल, इन सब के बारे में सोचते हुए डर तो नहीं, पर हाँ एक बैचैनी जरूर उसके मन में थी।
“सर क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?” बॉस के कमरे का दरवाजा खोलते हुए शिवानी ने पूछा।
“मिस शिवानी … आइए प्लीज। बैठिए। आज इस ऑफिस में आपका पहला दिन है सो सब नया लगेगा लेक़िन मुझे यकीन है कि आप जल्द ही सबसे घुलमिल जाएंगी। आप ऐसा कीजिये एच आर डिपार्टमेंट में मिस्टर निखिल शर्मा से मिल लीजिए। वो सीनियर मैनेजर हैं। वो आपको आपका काम समझा देंगें।”
“जी सर” चेहरे पर एक औपचारिक सी मुस्कान लिए शिवानी ने कहा और बाहर आ गयी।
“सुनिए, ये मिस्टर निखिल शर्मा का केबिन किधर है”? बाहर निकलकर शिवानी ने चपरासी से पूछा, जो उसे केबिन के दरवाजे पर छोड़कर आ गया।
शिवानी ने देखा अंदर कोई नहीं था तो वो वहीं सामने रखी चेयर पर बैठकर इंतजार करने लगी। लगभग पाँच-दस मिनट बाद निखिल शर्मा कमरे में आया।
“तो आज आपने जॉइन किया है? मुआफ़ कीजिये आपका शुभ नाम?”
निखिल को देखकर शिवानी के चेहरे पे हैरत के भाव आये लेकिन उसने तत्काल ही संभलकर जवाब दिया।
“शिवानी भटनागर”
निखिल भी जरा चौंका और शिवानी की तरफ़ एक नजर ध्यान से देखा। गेहुँआ रंग, तीखे नैन नक्स वाली शिवानी पीले रंग की शिफॉन की साड़ी में बहुत सुंदर लग रही थी। निखिल ने अपने चेहरे पे आयी हँसी को झटककर शिवानी से हाथ मिलाते हुए कहा ” वेलकम टू आवर ऑफिस मिस शिवानी”
शिवानी ने एक नजर खुद पर डालकर अचंभे से पूछा”आप हँसे किसलिए? इज देयर समथिंग रॉंग विथ मी?”
“अरे नहीं नहीं, ऐसा कुछ नहीं। दरअसल शिवानी भटनागर नाम की लड़की कॉलेज में हमारे साथ पढ़ती थी। इसलिये मुझे लगा कि कहीं वही तो नहीं, लेकिन आपको देखकर वो भ्रम दूर हो गया। वो बहुत मोटी सी थी, चश्मा लगाए हुए और दाँतों पर ब्रेशेस लगाये हुए। आप तो माशाअल्लाह काफी सुंदर हैं। बस उस ख्याल पे हँसी आ गयी थी।”
शिवानी के जी में तो आया कि वो उसपर हँसे और कहे कि मैं वही शिवानी भटनागर हूँ, जिसका तुम अपने दोस्तों के साथ मिलकर रोज मज़ाक बनाते थे। जो कॉलेज में कितनी ही बार क्लास छोड़ देती थी, इस डर से कि क्लास में तुम उसपर हँसने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दोगे। जो तुम्हारे कारण कितनी ही बार छुप कर रोयी है।
पर शिवानी नहीं चाहती थी कि निखिल से ऑफिस के काम के सिवा कोई भी और बात करने की बेवकूफी वो करे, क्यूँकि वो निखिल के दिलफेंक अंदाज़ से अच्छी तरह वाकिफ़ थी। इसलिए सिर्फ हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उसने इतना ही कहा कि ” जी, चलो अच्छा हुआ कि आपको जल्द ही अहसास हो गया कि वो शिवानी कोई और थी और ये शिवानी कोई और है।”
निखिल ने शिवानी को काम समझाया और फिर शिवानी वहाँ से चली गयी। अपनी कुर्सी पर बैठ पहले उसने पानी के दो-चार घूँट गले से उतारे ताकि वो इस बात को गले से उतार सके कि अब वो उसी निखिल शर्मा के साथ काम करने वाली है जिसने कॉलेज में उसका जीना हराम किया हुआ था, उसकी बदसूरती के कारण। निखिल जो कॉलेज का सबसे स्मार्ट लड़का था, पढ़ने में अव्वल लेकिन साथ ही फ्लर्टिंग में भी अव्वल। हर छठे महीने जिसकी गर्लफ्रैंड बदल जाती थी। फिर भी कॉलेज की हर लड़की उसकी गर्लफ्रैंड बनने को मरी जाती थी। और शिवानी जिसको सिर्फ अपनी पढ़ाई से मतलब था, जो न बाकी लड़कियों की तरह सजना-संवरना जानती थी और ना ही ख़ुद को सजने -सँवरने लायक मानती थी। काला रंग, तेल चिपे बालों की कसी हुई चोटी, आँखों पर मोटा चश्मा, दाँतों पर चढ़े हुए ब्रेशेस, मंझला कद तिस पर नाहक़ ही बढ़ा हुआ वज़न, ऐसी लड़की जो ख़ुद को कभी आईने में भी नहीं देखती थी। निखिल और शिवानी दोनों को ही पूरा कॉलेज जानता था, एक पर सब मरते थे तो दूसरी को जैसे सब मार ही देना चाहते थे। पर क्या वो इतना बदल गयी है कि निखिल उसको पहचान भी नहीं पाया? वैसे अच्छा ही है कि नहीं पहचाना, नहीं तो क्या पता वो फिर से उसका मज़ाक बनाना शुरू कर देता। ये सोचते हुए उसने एक लंबी साँस ली और काम में व्यस्त हो गयी।
“अरे शिवानी जी आप आते ही काम में जुट गयी। लंच ब्रेक हो गया है। कुछ खा-पी लीजिए। चलिए आपको कैंटीन दिखा देता हूँ।”
शिवानी जानती थी कि ये निखिल अपने दिलफेंक अंदाज से बाज नहीं आएगा। सो उसको टालने के अंदाज में उसने थोड़ी देर में आने का कहकर पीछा छुड़ाया। जब काफी वक्त बीत गया और उसे लगा कि अब तो वो कैंटीन से चला ही गया होगा तो वो खाना खाने के लिए उठी। पर उसकी किस्मत! सामने ही निखिल किसी के साथ गप्पें हाँकने में लगा हुआ था। और वो भी किसके साथ!! अमन.. उसका बेस्ट फ्रेंड.. मतलब अमन भी इसी कम्पनी में काम करता है! अमन और निखिल साये की तरह साथ रहते थे, पर फिर भी अमन का स्वभाव निखिल से बिल्कुल जुदा था। वो सौम्य स्वभाव का अच्छा लड़का था। कहीं ये अमन पहचान ना ले, इसलिए शिवानी वापिस मुड़ने को हुई।
“अरे शिवानी जी, आइए ना। इनसे मिलिए, ये अमन है मेरा बचपन का दोस्त और मजे की बात ये है कि स्कूल, कॉलेज से लेकर ऑफिस तक भी हमने एक-दूसरे का पीछा नहीं छोड़ा। ये भी यहीं काम करता है।”
“अरे अमन! याद है अपने कॉलेज में भी एक शिवानी भटनागर थी। इनका नाम भी शिवानी है। नाम सुनकर एक बारगी तो मैं धोखा खा गया था कि कहीं वो चम्पू ही तो नहीं, लेकिन फिर इन्हें देखकर समझ आया कि सिर्फ नाम मिलता है, सूरत नहीं।” कहकर निखिल खिलखिलाकर हँस पड़ा।
शिवानी का चेहरा शर्म से लाल हो गया क्यूँकि वो तो जानती ही थी कि निखिल आज फिर उसी का मजाक उड़ा रहा है।
अमन ने शिवानी की असहजता को भाँप लिया। हैलो के साथ ही उसने शिवानी को बैठने के लिए कुर्सी दी और चाय के लिए बोल दिया।
“शिवानी जी वैसे आपने अपनी ग्रेजुएशन कौन से कॉलेज से की है?” अमन ने पूछा
शिवानी को काटो तो खून नहीं। अब वो क्या कहे? झूठ भी नहीं बोल सकती क्यूँकि वैसे भी ऑफिस में सारे डॉक्यूमेंट जमा करवा ही दिए हैं तो देर सबेर इन्हें पता चल ही जाना था।
“जी, एस. डी. कॉलेज से”
“किस बैच में” अमन पहली नज़र से ही शुरू हुए अपने शक को दूर करने में लगा था।
“उसी बैच में जब तुम सब मुझपर हँसते थे” शिवानी को अब सच कहना ही मुनासिब लगा। वैसे भी आज नहीं तो कल पता चल ही जाना था, और वो छुपाए भी क्यूँ? उसकी कोई गलती थोड़ी ही थी।
अब आँखें फाड़ने की बारी अमन और निखिल की थी।
“ओ तेरी!!!!! तुम वही शिवानी हो!! तुम इतना कैसे बदल गयी ?? अरे अब कोई पहचाने भी तो कैसे, जमीन-आसमान का अंतर आ चुका है तुम में” निखिल ने अपनी झेंप और हैरानी मिश्रित आवाज में कहा।
“कोई बात नहीं निखिल, माना मैं बदल गयी हूँ, पर आज इतना तो पता चला कि तुम जरा भी नहीं बदले हो।”
“अरे पर तुम्हारी तो किसी NRI से शादी हो गयी थी ना और तुम लंदन चली गयी थी कॉलेज के बाद ही” अमन ने पूछा।
“हाँ, हुई तो थी शादी। ख़ैर… लंच-ब्रेक ख़त्म हो गया है, मैं चलती हूँ।” लंबी साँस ले शिवानी ये कहकर चली गयी।
शिवानी चली गयी पर अपने पीछे बुत बने अमन और निखिल को छोड़कर।
अगले दिन जब वो ऑफिस आयी तो उसे अपने टेबल पर सॉरी का एक कार्ड और एक फूलों का गुलदस्ता रखा हुआ मिला। नीचे नाम देख हैरत भी हुई और नहीं भी। निखिल है तो ऐसा कुछ तो करेगा ही किसी भी लड़की को इम्प्रेस करने को, पर हैरत इसलिए हुई कि उसे तो वो पसंद ही नहीं करता था, उसका दिल दुखे या ना दुखे, इस से उसे फर्क ही नहीं पड़ता तो फिर सॉरी क्यूँ? ख़ैर! कार्ड को दराज़ में रखकर वो काम में व्यस्त हो गयी। आज लंच टाइम में उसके ज्वाइन करने की ख़ुशी में ऑफिस कैंटीन में ही कुछ सहकर्मियों ने छोटी सी पार्टी का आयोजन किया था। हँसी-मज़ाक चल रहा था, कोई चुटकुला सुना रहा था तो कोई गाना। जब शिवानी की बारी आई तो उसने अपनी लिखी ही एक कविता सुना दी। उसे कॉलेज के वक़्त से ही लिखने का शौक रहा है। ‘इश्क़’ पर लिखी कविता जो प्यार को उसके नजरिये से दिखाती थी। सबने ही बहुत कविता को बहुत सराहा। निखिल ने भी सुनी पर अच्छा या बुरा, कुछ कहा नहीं।
“तुम तो बहुत अच्छा लिखती हो शिवानी, कब से भला?” अमन ने पास आते हुए कहा
“अरे कुछ नहीं, बस यूँ ही कॉलेज के वक़्त से ही तुकबंदी कर लेती हूँ।”
ना शिवानी ने कार्ड का जिक्र किया ना ही निखिल ने।
अगले दिन जब वो लंच कर रही थी तो अमन और निखिल भी आकर पास की कुर्सियों पर बैठ गए।
“अरे शिवानी! माफ भी करो अब हमको वो बचकानी हरकतों के लिए। सच में मुझे काफी बुरा लग रहा है कि क्यूँ बेवजह तुम्हें इतना परेशान करता था” निखिल ने कहा।
“ठीक है चलो किया माफ, पर एक बात तुमने अब भी गलत कही , तुम बेवजह परेशान नहीं करते थे। वजह थी ना, मेरी बदसूरती, तुम्हें सुंदर लड़कियाँ ही जो पसंद थी” कहकर शिवानी खिलखिलाकर हँस पड़ी।
” हाय! तुम हँसते हुए कितनी सुन्दर लगती हो” निखिल ने दिल पे हाथ रख घायल होने के अंदाज में कहा और फिर तीनों ही खिलखिलाकर हँस पड़े।
“पर तुम वापिस इंडिया कब आयी? तुम्हारे पति भी यहीं शिफ्ट हो गए क्या?” अमन को कौतूहल ज्यादा था शायद।
“मेरा तलाक हो चुका अमन”
“क्या!!! पर क्यूँ?”
” हर आदमी को एक सुंदर लड़की से ही प्यार होता है और मैं सुंदर नहीं थी, तो मुझसे उसे कैसे प्यार होता भला!”
“पर अब तो…” अमन संकोचवश सीधी तरह कह नहीं पाया कि अब तो तुम वैसी नहीं दिखती तो अब क्यूँ छोड़ा तुम्हारे पति ने?
” शादी के बाद मैंने खुद को बहुत बदला अपने पति की नजरों में सुंदर दिखने के लिए, लेक़िन उनका वहाँ पहले से ही किसी लड़की से अफ़ेयर था। मुझसे शादी घर वालों के दवाब में आकर कर ली थी, लेकिन वहाँ जाते ही मुझे सब कुछ बताकर मेरे हाल पर मुझे छोड़ दिया। आखिरकार वहाँ घुट-घुटकर मरने से अच्छा मैंने वापिस इंडिया आने का फैसला लिया और आकर जॉब जॉइन कर ली” एक लंबी साँस लेकर शिवानी उठ खड़ी हुई। अमन और निखिल कुछ नहीं बोल पा रहे थे।
धीरे-धीरे शिवानी वहाँ के माहौल के साथ घुल-मिल गयी थी।उनकी तिकड़ी अब जब भी साथ बैठती तो तीनों ही नयी-पुरानी बातों पर जमकर ठहाके लगाते। पर एक बात पर शिवानी गौर कर रही थी कि निखिल उसका कुछ ज्यादा ही ध्यान रखने लगा था। उसे पुराने गाने पसंद थे, तो जब भी वो कैंटीन में बैठते, वो पहले से चल रहे किसी पंजाबी गाने को बदलवाकर पुराने गाने लगवाकर आ जाता था। शिवानी जब शाम होते होते काम करते थक जाती थी तो बीच में चाय पीने जाती थी , निखिल को ये पता चल गया था तो चार बजते ही उसकी टेबल पर चाय भिजवा दी जाती थी , बिना उसके कुछ कहे। उसे किताबें पढ़ने का शौक था तो निखिल जाने कहाँ से उसके पसंदीदा लेखकों की किताबें उसके लिए लेकर आ जाता था जबकि आधी से ज़्यादा किताबें शिवानी की पढ़ी हुई निकलती थी। कितनी ही बार ऑफिस में उसके हिस्से के काम को ख़ुद ही कर लेता था और उसको बाद में पता चलता था कि ये काम उसने करना था।
“अरे तुम मेरा इतना ख्याल क्यूँ रख रहे हो भला” शिवानी हँसकर कहती।
“मुझे तुम्हारा ख्याल रखना अच्छा लगता है”
“वो तो तुम्हें हर लड़की का ख्याल रखना अच्छा लगता है” शिवानी ने हँसकर कहा।
“हा हा हा नॉट सो फनी” मुँह बनाकर निखिल चला गया।
छुट्टी से पहले निखिल उसके पास आया।
“सुनो शिवानी, आज ऑफिस के बाद मैं तुम्हें घर छोड़ दूँ क्या?”
“क्यूँ? तुम्हें मुझे घर छोड़ना भी अच्छा लगता है क्या? जहाँ तक मैं तुम्हें जानती हूँ, तुम्हें लड़कियों को कहीं का न छोड़ना अच्छा लगता है” कहकर शिवानी खिलखिलाकर हँसने लगी।
“यार तुम कभी मुझे सिरियसली भी ले लिया करो। जरूरी नहीं कि हर बार मुझे ताने ही मारे जाएँ।”
“अच्छा चलो ठीक है, तुम मुझे छोड़ देना.. आज घर” हँसते हुए शिवानी ने कहा।
ऑफिस से शिवानी निखिल के साथ उसकी गाड़ी से घर के लिए निकल गयी। थोड़ी दूर जाकर ही निखिल ने गाड़ी दूसरी तरफ मोड़ ली जो शिवानी के घर का तो रास्ता नहीं था।
“अरे! हम गलत दिशा में क्यूँ जा रहे हैं? मेरे घर का तो ये रास्ता नहीं है।” शिवानी ने चौंकते हुए कहा।
“माना ये रास्ता तुम्हारे घर का नहीं है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि ये गलत दिशा है। हम सही दिशा में जा रहे हैं।दो मिनट चुप बैठो।”
तभी निखिल ने मंदिर के सामने गाड़ी रोक दी।
“चलो” निखिल हैरान सी शिवानी का हाथ पकड़कर मंदिर की ओर ले चला।
“पर हम इस वक़्त मंदिर में किसलिए आये हैं निखिल? मैं तो रोज सुबह मंदिर आती ही हूँ। ख़ैर! मंदिर तो जितना आएँ, कम ही है। चलो दर्शन कर लेते हैं।” शिवानी पल्लू सिर पर करते हुए अंदर चली गयी।
आँखें बंद कर ईश्वर का ध्यान किया और जैसे ही आँखें खोली तो देखा कि निखिल उसे एकटक निहार रहा है।
“क्या माँगा तुमने?” निखिल ने पूछा
“कुछ भी नहीं, बस भगवान को याद किया। जरूरी नहीं कि भगवान से कुछ मांगा ही जाए। मैं तो बस यही चाहती हूँ कि वो हमेशा मेरे साथ रहे, चाहे जो भी दे।”
“पर मैंने माँगा।”
“अच्छा! भला क्या माँगा?”
” मैंने माँगा कि ये लड़की जो भी माँग रही है वो इसको दे दो। मैं तुम्हें हमेशा खुश देखना चाहता हूँ शिवानी।”
“लो, कर दी ना अपनी दुआ बेकार, मैं तो कुछ माँग ही नहीं रही थी जो अब तुम्हारे कहने से भगवान मुझे दे दें, इस से अच्छा कुछ और ना माँग लेते पागल” हँसती हुई शिवानी प्रसाद लेकर चल पड़ी।
“तुम्हें पता है तुम मुझे हँसती हुई बहुत अच्छी लगती हो, पर हर बात हँस कर टालने के लिए नहीं होती शिवानी।” शिवानी का हाथ पकड़ते हुए निखिल ने कहा।
शिवानी की आँखों में उस वक़्त जो सवाल था, निखिल आज सिर्फ वो सवाल खड़ा करने नहीं बल्कि उसका जवाब देने की भी सोचकर आया था।
“देखो शिवानी, मैं जानता हूँ कि तुमने अतीत में एक धोखे के दर्द को सहा है। तुम किसी पर भरोसा नहीं कर पाओगी आसानी से। मेरी छवि भी तुम्हारी नजरों में दिलफेंक लड़के की ही है। पर क्या तुम मुझे इतना वक़्त दे सकती हो कि भरोसा तुम्हारे दिल में मेरी शक्ल अख्तियार कर ले। यकीन मानो मैं तुम्हारे भरोसे को कभी नहीं तोडूंगा। मैं तुम्हें वो छोटी-छोटी खुशियाँ देना चाहता हूँ जिनको तुम अपने आँचल में समेटकर ख़ुद को इस दुनिया की सबसे ख़ुशनसीब लड़की मानो। मुझे तुमसे प्यार हो गया है शिवानी। और ये कहने के लिए ही मैं तुम्हें उस जगह लेकर आया हूँ जिनको तुम सबसे ज़्यादा मानती हो।” शिवानी के हाथों को थामे हुए निखिल ने कहा।
शिवानी ये सुनकर एक बारगी जड़ सी हो गयी। ये निखिल क्या कह रहा है? निखिल, जिसपर कितनी ही लड़कियाँ फ़िदा हैं, कॉलेज से लेकर ऑफिस तक सब उसके आस-पास रहना चाहती हैं, वो निखिल उस शिवानी को ये सब कह रहा है जिसका को कभी बेतहाशा मज़ाक बनाता था। और निखिल किसी एक लड़की पर टिक कर रह भी कब पाया है। उसका मन भरते ही वो अपनी गर्लफ्रैंड बदल लेता था, सब जानते हैं। और शिवानी तो आज तक कॉलेज के वक़्त ख़रीदी घड़ी भी नहीं बदल पायी। वो एक बार किसी से जुड़ जाती तो फिर उम्र भर के लिए ही जुड़ जाती थी।
“देखो निखिल, अतीत में तुम सही रहे हो या गलत, मैं नहीं जानती, पर मैं इतना जानती हूँ कि मैं तुमसे बहुत अलग हूँ। तुम मेरे जैसे नहीं हो। मेरे लिए ये रिश्ते, अहसास, भावनाएं बहुत मायने रखते हैं। मैं आज तक किसी से इसीलिए नहीं जुड़ी कि मुझे यही डर रहा कि वो छोड़ के चला गया तो मैं जिऊंगी कैसे उसके बिन। और तुम तो मौसम के साथ लड़कियाँ बदल लेते थे। मैं बाकी लड़कियों की तरह तुम्हेँ भूलकर आगे नहीं बढ़ पाऊँगी निखिल। मेरी ज़िंदगी वहीं ठहर जाएगी। अच्छा है कि हम दोस्त ही रहें।” शिवानी इतना कहकर चल पड़ी।
“रुको शिवानी, तुम्हारा डर सही है। पर मैं जो तुम्हारे लिए महसूस कर रहा हूँ, वो मैंने आज तक किसी के लिए महसूस नहीं किया। आज तक मैंने जो भी किया हो, पर यकीन मानो ऐसा लगता है कि प्यार सिर्फ तुमसे ही हुआ है मुझे अब। भगवान के सामने झूठ तो नहीं बोलूँगा ना मैं। प्लीज़ मान जाओ।”
शिवानी समझ नहीं पा रही थी कि निखिल हर बार की तरह उसे भी अपने जाल में फंसा रहा था या सच कह रहा था। पर क्या मन्दिर में भी झूठ कहेगा वो? क्या इतने दिन से जो केअर वो उसके लिए दिखा रहा था वो सब सच था या झूठ? कहीं वो निखिल के प्यार को चाल मानकर उसके साथ गलत तो नहीं कर रही? और फिर सच तो ये भी था कि इतने दिनों में उसके दिल में भी धीरे-धीरे निखिल के लिए भावनाएँ जागने लगी थी। शायद ईश्वर का ये ही इशारा हो उसके लिए। अगर निखिल को झूठ कहना होता तो वो कहीं भी ले जाकर ये बात कह देता, रेस्टोरेंट, पार्क या ऑफिस। पर उसने मंदिर को चुना है तो कहीं न कहीं उसके दिल में सच्चाई ही रही होगी। ये सब सोचते-सोचते कब वो निखिल का हाथ थामकर सीढियां उतरने लगी, उसको भी पता नहीं चला।
गाड़ी में बैठे तो निखिल ख़ुशी में उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर देर तक चुप बैठा रहा और शिवानी को ताकता रहा। वो जानता था कि शिवानी शब्दों की बजाय ख़ामोशियों की जुबान पसन्द करती है।
घर पहुँचकर शिवानी मंदिर में हुई बातों को ही सोचती रही। निखिल के लिए उसके मन में जागे प्यार को जैसे ही मंदिर की पावन जमीं मिली, वो प्यार जैसे उसके अंदर उतरता ही चला गया। आज वो बेतहाशा ख़ुश थी। जिस इश्क़ को वो अब तक कागज पर ही उतारती आयी थी, आज वो इश्क़ उन फ़सानों से निकलकर उसके जीवन में आ गया था। शिवानी की सारी रात जागते हुए और मुस्कुराते हुए बीत गयी।
उसका ध्यान भंग हुआ जब सुबह के अलार्म की आवाज आयी।
“अरे! सुबह भी हो गयी! जल्दी से तैयार होती हूँ, कहीं ऑफिस के लिए लेट ना हो जाऊँ।”
आज ऑफिस पहुँचने के लिए जितनी ख़ुशी उसके मन में हो रही थी, उतनी ही बैचैनी भी। उसको देखकर कोई भी अंदाजा लगा लेता कि कोई तो बात है जो वो इतना अलग बिहेव कर रही है। ऑटो स्टैंड पहुँची ही थी कि देखा निखिल गाड़ी लिए वहीं खड़ा है। शिवानी को ये देख ख़ुशी हुई लेकिन वो नकली हैरानी दिखा गाड़ी में बैठते हुए बोली ” तुम! तुम इधर किसलिए रुके हुए हो?”
“लड़कियों को देख रहा था इधर खड़े होकर, सोचा जो सबसे सुंदर दिखेगी उसको उठा ले जाऊँगा।” निखिल ने आँखें घुमाते हुए शरारत से कहा।
“फिर लेकर नहीं गए?”
“ले कर तो जा रहा हूँ”
और फिर दोनों ही हँस पड़े।
अब रोज ही शिवानी और निखिल साथ ही ऑफिस से आने-जाने लगे थे। कार में बैठे हुए एक दूसरे का हाथ थामे पुराने हिन्दी गाने सुनते घंटों निकाल देते थे। उन्हें एक- दूसरे से जो कहना होता था उस बात को कहने के लिए भी वो गानों का सहारा लेते थे, और ऐसा गाना लगा देते थे जिस से वो बात बिना बोले कही जाती। निखिल के काँधे पर सिर लगाकर और उसके सीने पे हाथ रखकर जैसे शिवानी अपना सारा प्यार उसके दिल में उड़ेल देती थी। उस प्यार में दोनों ने एक-दूसरे से कितने ही वादे किए थे। निखिल के प्यार ने शिवानी को जैसे ज़िंदगी के मायने दे दिए थे। वो जानती थी कि निखिल उसका साथ कभी नहीं छोड़ेगा। खुशियाँ कितनी देगा पता नहीं, पर कभी दुःख नहीं देगा उसे। क्यूँकि वो जानता है कि वो कितना दुःख सह चुकी थी।
“यार तुम दोनों आजकल मिलते ही नहीं हो छुट्टी के बाद। एकदम से गायब मिलते हो। और निखिल तू आजकल मेरे साथ अपने पुराने ठिकाने पर भी नहीं चलता। चल क्या रहा है” अमन ने चाय की ट्रे टेबल पर रखते हुए कहा।
“फॉग चल रहा है” निखिल ने कहा और ठहाका लगाकर हँस दिया।
“निखिल का नहीं पता अमन, लेकिन मेरे जीवन में फॉग तो नहीं चल रहा, सब बिल्कुल साफ और सुंदर दिखाई दे रहा है” शिवानी बाहें फैलाती हुई बोली।
“मतलब” अमन ने पूछा।
“मतलब कुछ नहीं अमन, वो क्या है ना कि मुझे आजकल ऑफिस के बाद किसी से मिलना होता है, इसलिए मैं जल्दी निकल जाती हूँ। निखिल का इसको पता होगा।”
“अरे! मिलना होता है! किस से! हमें नहीं बताया?” अमन कुर्सी से उछलकर बोला।
“हाँ हाँ मुझे भी बताओ, जल्दी बताओ।” निखिल ने शरारत से हँसते हुए कहा।
” बताऊँगी अमन, जल्दी ही। और मैं नहीं, वो ख़ुद ही बताएगा। तुम्हें तो ज़रूर।” शिवानी ने कहा।
“अच्छा अमन अब मैं चलती हूँ। आज आधे दिन की छुट्टी लेकर जा रही हूँ। घर पर कुछ काम है।कल सुबह मिलते हैं।” शिवानी ने निखिल की तरफ देखते हुए कहा और हल्की सी मुसकराहट देकर चली गयी।
आज ऑफिस से निकलते जाने क्यूँ शिवानी का दिल घबरा रहा था। जैसे कुछ छूट रहा है उस से। इसलिए ऑटो में बैठते ही उसने निखिल को फ़ोन मिलाया ताकि उस से बात करके मन को कुछ राहत मिले। पर निखिल शायद कहीं बिजी था तो उसने फ़ोन नहीं उठाया। हुआ भी कुछ बुरा ही। शिवानी आधे रास्ते ही पहुँची थी कि उसके ऑटो को ट्रक ने टक्कर मार दी। शिवानी हाथ में फ़ोन लिए लहूलुहान सड़क पर बेहोश पड़ी थी। आसपास के लोगों ने उसे तुरन्त हॉस्पिटल पहुँचाया और क्यूँकि आख़िरी डायलड नम्बर निखिल का ही था तो उसी को फ़ोन करके एक्सीडेंट के बारे मे बता दिया। निखिल उस वक़्त किसी मीटिंग में था। सुनकर एक बार चौंका लेकिन पल भर में ही फिर मीटिंग में बिजी हो गया। शाम को एक पुराना दोस्त ऑफिस उस से मिलने आ गया और निखिल और अमन उसके साथ कहीं निकल गए।
रात याद आया कि शिवानी हॉस्पिटल में है।
“अब ये क्या झंझट हो गया। अब उसके लिए रोज हॉस्पिटल के चक्कर कौन काटेगा! अच्छी खासी फँस गयी थी, थोड़े दिन और ठीक-ठाक नहीं रह सकती थी क्या? हाँ मुझे अच्छी लगती है वो, भोली सी है, मुझसे प्यार भी बहुत करती है पर इसका मतलब मैं अब उसकी तीमारदारी में थोड़ी लगा रहूँगा। मेरी भी अपनी लाइफ है। वैसे भी कल मुझे दोस्तों के साथ शिमला जाना है।” निखिल बुदबुदा रहा था।
निखिल कभी बदला ही नहीं था। वो शिवानी से प्यार भी नहीं करता था, सिर्फ उसकी भावनाओं से खेल रहा था। और एक शिवानी थी जिसकी रगों में ख़ून के साथ निखिल का प्यार भी दौड़ रहा था।
अगले दिन जब शिवानी को होश आया तो उसने सबसे पहले अपना फ़ोन माँगा। उसे पता था कि निखिल उसके एक्सीडेंट के बारे में कुछ नहीं जानता होगा, नहीं तो वो यहाँ से हिलता भी नहीं। उसने निखिल को फ़ोन किया। निखिल ने जैसे ही हैल्लो बोला, शिवानी की रुलाई फूट पड़ी। उसने रोते हुए सारी बात बताई, उसे पता था कि निखिल अभी हॉस्पिटल के लिए निकल लेगा। पर रात तक दरवाजे को निहारते रहने से निखिल कहाँ आने वाला था! ना निखिल ने आना था ना आया। यहाँ तक कि फ़ोन या msg भी नहीं आया। शिवानी बार-बार अपना फ़ोन उठाकर देखती कि ऑफ तो नहीं हो गया है। या कहीं ऐसा तो नहीं कि निखिल ने फ़ोन किया हो और उसे सुनाई ही ना दिया हो। ऐसा तो नहीं हो सकता कि उसकी ख़बर सुनकर निखिल उसे फ़ोन ना करे या मिलने ना आये। तभी उसने फेसबुक खोलकर देखी तो देखा कि निखिल दोस्तों के साथ शिमला घूमने गया है, तस्वीरें भी डाली हुई थी। ख़ूब मस्ती करते हुए। शिवानी देख सन्न रह गयी। निखिल को उसके दर्द से कोई मतलब नहीं! वो एक बार उसे देखने भी नहीं आया! एक्सीडेंट के वक़्त इतना दर्द नहीं हुआ था, जितना दर्द वो अब महसूस कर रही थी।
वो समझ गयी कि निखिल शर्मा कभी बदला ही नहीं था। वो ही कतरे को समंदर समझ बैठी। पर ये सच अब इस सच को कैसे बदले कि वो निखिल से बेइन्तहां मुहब्बत करने लगी थी। जिस बात से वो उम्र भर डरती रही, वही अब उसकी ज़िन्दगी की सच्चाई बन चुकी थी। हिचकियों के साथ उसकी रुलाई फूट पड़ी।
अगले दिन फिर सुबह से उसकी आँखें दरवाजे पर टिक गई ये जानते हुए कि उसको जिसका इंतजार है, वो नहीं आएगा। अचानक से उसने अमन को आते देखा। उसे लगा शायद अमन के साथ निखिल भी हो।
“अमन” शिवानी की आवाज़ में एक उम्मीद सी थी।
“अरे शिवानी ये कैसे हुआ यार? और दो दिन हो चुके, मुझे पता ही नहीं चला। आज ऑफिस में किसी ने बताया कि तुमने कुछ दिन की छुट्टी के लिए अप्लाई किया है क्यूंकि तुम्हारा एक्सीडेंट हो गया है। निखिल शिमला गया हुआ है, उसे तो कुछ पता ही नहीं। मैंने सोचा वो कल आएगा तब फिर मिलने आ जायेंगे, अभी तो मैं तुमसे मिल आता हूँ।कब हुआ, कैसे हुआ ये?”
उसे एक्सीडेंट के बारे में बताते-बताते शिवानी निखिल के धोखे को याद कर रुआँसी हो चली थी इसलिए फिर शिवानी का ध्यान दर्द से हटाने को अमन उस से इधर-उधर की बातें करने लगा।
“अरे अमन तुमने मेघा को बताया कि नहीं कि तुम उसे पसंद करते हो” अचानक शिवानी को याद आया कि दो दिन पहले ही अमन उनके ही ऑफिस में काम करने वाली मेघा को प्रपोज करने वाला था।
“नहीं यार, मैं फिर से डर गया। कहीं गुस्सा ना हो जाये वो या कहीं मना ही ना कर दे, ये सोचकर फिर कुछ नहीं कह पाया” मायूसी से अमन ने जवाब दिया।
“कमाल है, तुम्हारे पास तो लव गुरु है फिर भी तुम किसी को प्रपोज करने से डर रहे हो!” उदास सी मुस्कान के साथ शिवानी ने कहा।
“कौन? निखिल? अरे वो लव गुरु नहीं, दूसरा ही गुरु है। तुम तो उसे जानती ही हो। उसे जो लड़की फंसी, उसने वो बख़्शी नहीं। अच्छा अब मैं चलता हूँ। फिर आता हूँ मिलने। ध्यान रखना अपना।”
अमन चला गया। पर उसकी बात अब भी शिवानी के कानों में गूँज रही थी। “उसे जो फँसी, उसने वो बख़्शी नहीं” वो ख़ुद भी फँस तो चुकी है निखिल के जाल में, शायद जिस दिन निखिल का जी भर जाता उस से, वो उसे छोड़ ही देता पर इन सबसे पहले ही उसका ये एक्सीडेंट हो गया।
पंद्रह दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद शिवानी ने ऑफिस जॉइन कर लिया। ऑफिस पहुँचते ही सब उसके पास आये और उसका हाल पूछा। निखिल वहाँ से गुजरा लेक़िन शिवानी ने देखा कि वो नज़रें नहीं मिला रहा था। पिछले पंद्रह दिन से उसने शिवानी को कोई फ़ोन तक नहीं किया था। वो हमेशा से यूँ ही करता आया था सबसे, फ्लर्टिंग..और फिर उसको बाई बाई। कभी किसी की पलटकर याद उसे आयी नहीं। पर पिछले कुछ दिन से निखिल को अजीब सी चिड़चिड़ाहट होने लगी थी ख़ुद से ही। कार में अनायास ही पुराने गाने चला देता, कभी उसका हाथ साथ वाली सीट पर किसी का हाथ थामने को बढ़ जाता तो कभी अपने काँधे पे शिवानी का सिर रखा महसूस होता। शिवानी का निश्छल प्यार उसके कमीनेपन पर हावी हो रहा था। शिवानी को ऑफिस में देख उसे एक अजीब सी ख़ुशी हो रही थी लेक़िन उस से बात करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा था। उसे इन बातों से कभी कोई फ़र्क नहीं पड़ा, फिर अब क्यूँ बुरा लग रहा है उसको शिवानी के लिए, ये बात उसको समझ नहीं आ रही थी।
अगले दिन वो अपने कमरे में बैठा इसी उधेड़बुन में था कि अब शिवानी को फ़ोन करके उसकी तबियत के बारे में पूछे या नहीं कि तभी उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई।
“कौन? आ जाओ अंदर”
दरवाजा खुला, शिवानी अंदर आयी और निखिल जड़ सा रह गया।
“शिवानी, आओ बैठो ना” हकलाती आवाज़ में निखिल ने कहा।
शिवानी मेज का सहारा लेते हुए कुर्सी पर बैठ गयी। निखिल ने नज़र चुराकर शिवानी को देखा। इन पंद्रह दिनों में ही उसकी सूरत बिल्कुल बदल गयी थी। ये पंद्रह दिन पहले वाली शिवानी तो नहीं थी। हमेशा मुस्कुराता वो चेहरा उदास और बेज़ान दिखाई दे रहा था। उसकी टिमटिमाती आँखें आँसुओं से भरी थी। गालों के डिम्पल पिचके हुए गालों में कहीं खो गए थे।
निखिल जानता था कि शिवानी की इस हालत का जिम्मेदार वो एक्सीडेंट नहीं, बल्कि उसका दिया हुआ धोखा है।
“निखिल तुमने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया? क्यूँ मेरे साथ वो प्यार का नाटक किया तुमने? अरे, इस झूठे प्यार से ज़्यादा अच्छी तो तुम्हारी कॉलेज के वक़्त की नफ़रत थी, कम से कम उसमें सच्चाई तो थी। तुम जानते थे कि मेरा दिल पहले ही टूटा हुआ है, उसपर मरहम लगाने की बात कहते-कहते तुम कब उसे चकनाचूर कर गए, मुझे तो भनक ही ना हो पाई निखिल। जानते हो हॉस्पिटल में जब आँख खुली तो सबसे पहले तुम याद आये, तुम्हें फ़ोन किया। सोचा कि तुम आकर मुझे छुओगे और मेरे सारे जख़्म भर जाएँगे। पर तुमने आना तो दूर, फ़ोन तक नहीं किया। समझ गयी हूँ कि प्यार तो तुमने मुझे कभी नहीं किया, पर क्या इंसानियत भी नहीं बची थी निखिल?” रोते हुए शिवानी ने कहा।
निखिल से कुछ भी कहते नहीं बन रहा था लेकिन कुछ कहे बिना रह भी नहीं सकता था। शब्द जैसे गले में अटक रहे थे। उसे आभास था कि आज उसकी हर बात बेमानी ही लगेगी।
“मैं जानता हूँ कि मेरी किसी भी बात का अब तुम यकीन नहीं कर पाओगी शिवानी। पर सच यही है कि पहले दो-तीन दिन मैं नहीं आया ना फ़ोन किया क्योंकि मुझे लगा कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारे साथ क्या हुआ। मैं अपनी ज़िंदगी में मस्त रहा। मुझे तुम अच्छी लगती थी पर ऐसा प्यार भी नहीं था कि तुम्हारी तीमारदारी में लगूँ। पर कुछ दिन बाद ही मेरे अंदर अजीब सा दर्द उठने लगा, तुम्हारी वो हँसी याद आने लगी, तुम्हारी हर बात को मैं मिस करने लगा। मुझे नहीं पता कि मेरे साथ ये क्या हो रहा है? कई बार सोचा फिर कि तुम्हें फोन करूँ। पर फिर सोचता कि अब किस मुँह से तुमसे बात करूँगा। और फिर रह जाता।” निखिल ने सिर झुकाए हुए कहा।
” उसी मुँह से बात करते जिस से अब कर रहे हो निखिल।”
“क्या तुम मुझे कभी माफ़ कर पाओगी शिवानी?” इस बार निखिल की आवाज भर्राई हुई थी।
” तुम्हें माफ़ करूँ, नफ़रत करूँ या प्यार करूँ, ये तो मैं ख़ुद नहीं समझ पा रही निखिल। तुमने ये झूठा रिश्ता जोड़ा भी तो भगवान के मंदिर में। तो तुमसे ज़्यादा तो मुझे उनसे नाराज होना चहिए जो उन्होंने अपनी आँखों के सामने ये सब होने दिया। पता है निखिल मैंने तुमसे ये सोचकर प्यार नहीं किया था कि तुम मेरे लिए कुछ करोगे, मुझे सिर्फ़ खुशियाँ दोगे तो ही मेरा तुम्हारे लिए प्यार रहेगा। हॉस्पिटल के बेड पर पड़ी हुई भी तुम्हारी याद में रोती रहती थी लेकिन कभी ये सवाल नहीं आया कि उस से मैं क्यों प्यार करूँ जो मुझे इतना दर्द दे रहा है। मैंने अपनी ज़िंदगी में प्यार को सिर्फ़ तुम्हारी सूरत में देखा है निखिल, और मेरी ज़िंदगी में तो अब ये प्यार अपनी सूरत बदल नहीं पायेगा। तुम्हारा हर धोखा, तुम्हारा दिया कोई भी दर्द मेरे प्यार से बड़ा नहीं है। मेरी ज़िंदगी में ना सही पर मेरे दिल और दुआओं में तुम हमेशा रहोगे।तो सवाल ये नहीं है निखिल कि मैं तुम्हें माफ़ करुँगी या नहीं, सवाल ये है कि तुम ख़ुद को माफ़ कैसे करोगे?” इतना कहकर शिवानी आँसू पौंछते हुए बाहर निकल गयी।
अगले दिन ऑफिस पहुँची तो आज फ़िर उसकी मेज पर एक कार्ड और फूलों का गुलदस्ता रखा था। उसने कार्ड उठाया ही था कि अमन दौड़ते हुए आया और बताया कि सुबह ही निखिल जॉब छोड़कर चला गया है। किसी को कोई कारण भी नहीं बताया। शिवानी ने कार्ड खोला, उस पर वही एक शब्द था जो पिछली बार वाले कार्ड पर था “सॉरी”। हाँ आज इसके साथ एक कविता भी थी जो उसने ऑफिस में पहली बार सुनाई थी और फिर एक बार निखिल को रिकॉर्ड करके भेजी थी “इश्क़”। शिवानी की आँखों से दो आँसूं निकलकर गिर पड़े और वो धम्म से कुर्सी पर बैठ गयी। अमन ने उसके हाथ से कार्ड लेकर देखा और सवालिया निगाहों से शिवानी को देखने लगा। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।
“शिवानी ये तो निखिल की हैंडराइटिंग है। पर वो तुम्हें ‘सॉरी’ क्यूँ कह कर गया है? तुम जानती थी क्या उसके जाने के बारे में?”
” याद है अमन एक दिन हॉस्पिटल में जब तुम मुझसे मिलने आये तो तुमने कहा था कि उसको जो लड़की फँसी उसने उसको बख़्शा नहीं”
“हाँ, पर उस बात का इधर क्या ताल्लुक़?” अमन ने हैरानी से कहा।
“समझ लो उसने मुझे बख़्श दिया” इतना कहकर शिवानी अपना इस्तीफा टाइप करने लगी।
सुरेखा कादियान ‘सृजना’
स्वरचित