“उसने देखा था”
उसने देखा था
कोमलता के चरम पर
ताउम्र पल्लवित
हृदय की विशालता का
टुकड़ों में परिवर्तन
अभिमान था उसे सुरज सा तेज लिये
आरंभ की उस कसौटी पर
जिसका सिंचन ही
सागर की गहराई करती रही हमेशा
पर
विफल
हर एक सत्य
ओढ़
असत्य का आवरण
नहीं है आज
समय में उतरार्द्ध
पाषाण में लिपटा
कहीं पूर्वाद्ध
न बेचैनी न क्षोभ
न मंजिल न राह
पाषाण सा हृदय
शांत है आज
कर
व्याकुलता का तर्पण
अंधेरे को चीर
बिना परछाई
स्थिर रोशनी
में
प्रज्वलित
संवेदना का पाषाण में परिवर्तन
हाँ,
……उसने देखा था……
© दामिनी