!! उसको दिए पंख – तुझ को भी दी बुधि !!
आसमान में कैसे उड़ जाता है
एक छोटा सा भी पक्षी
नहीं लेता सहारा किसी का
पकड़ लेता है गति अपनी
भगवान् ने दी उड़ने के कला
तभी तो उड जाता है
नील गगन में कितना ऊँचा
नभ को भी भेद जाता है
इंसान सोचता गर पंख
होते मेरे भी तो ऊड जाता
पर तुझ को दी विधाता ने
बुधि पर कहाँ इस्तेमाल कर पाता
वो तो पक्षी है नन्हा सा
फिर भी दिमाग है चला पाता
अपने बल पर अपनी बुधि से
यहाँ वहां उड है जाता
देख इंसान तेरा कद उस के पंख
से कितना ही तो प्रबल है
करता गलत काम पल पल
वो पंखो से कितने अछे करता कर्म है
अजीत कुमार तलवार
मेरठ