उसको उसके घर उतारूंगा मैं अकेला ही घर जाऊंगा
उसको उसके घर उतारूंगा
मैं अकेला ही घर जाऊंगा,
अगर वो नहीं मिला मुझको
तो मैं कौन सा मर जाऊंगा |
उसको आंख भर देख लिया
मैं वहीं पर बिखर जाऊंगा ,
दिल में कुछ भी हो लेकिन
कोई पूछेगा मुकर जाऊंगा |
जिंदगी में आ जाए मेंरी
वह हमसफर की तरह ,
मस्तक पर सजा लूंगा उसे
मैं धीरे-धीरे सभर जाऊंगा |
हर चीज ही मकबूलियत
तक जाये ये जरूरी नहीं ,
तूने बैठने को ना कहा तो
मैं फिर किधर जाऊंगा |
जुबान पर कुछ और है
आंखों का बयान और ,
दिमाग में कुछ और है
इससे तो मैं डर जाऊंगा |
✍कवि दीपक सरल