उसके लिए राष्ट्र से बढ़कर कुछ भी नही
उसके लिए राष्ट्र से बढ़कर कुछ भी नहीं
#पण्डितपीकेतिवारी
उसके लिए देश से बढ़कर कुछ भी नहीं।
जिस वक्त राष्ट्र प्रधानमंत्री जी के एक छोटे से अनुरोध का अनुसरण कर रहा था जिस वक्त सारा देश तालियों,थालियों और शंखनाद की गूंज से राष्ट्र के उन तमाम डॉक्टर्स/नर्सेस/स्टॉफ इत्यादि का अभिवादन और हौसला आज़फाई कर रहा था ठीक उसी वक्त देश का एक कूड़े बीनने वाला सबसे निचले तबके का शख़्स भी इस का हिस्सा बना।
आश्चयर्जनक था मैं ये दृश्य देखकर वाकई!…
उसे मालूम भी नहीं कि उसका इससे दूर-दूर तक कोई नाता है भी या नहीं। क्योंकि जब सारा दिन उसे बाहर ही रहना कूडे में ही रहना, रेलवे स्टेशन,बस स्टेशन नालियों के आसपास ही कूड़ा बीनना तो उसके लिए क्या कोरोनो और क्या कोई वायरस।
सोचें उसके लिए वो पांच मिनट कितने महत्वपूर्ण रहे होंगे? दिन-भर कर्फ्यू था, इस दिन उसने कोई कूड़ा मिला भी होगा की नहीं जिससे उसे शाम को दो जून की रोटी नसीब होनी थी। मगर उसका ज़ज़्बा काबिले तारीफ.. अद्भुत…..अविश्वमरणीय ..अतुलनीय…..
ये उन तमाम गुटों और गुटों से जुड़े कुंठित लोगो के मुँह पर तमाचा था जो हर बात में पॉलिटिक्स घुसेड़ने की कोशिश करते हैं जिन्हें हर अच्छे चीज़ में गलत निकालने का कीड़ा रहता है, ये उनके मुह पर भी तमाचा है- जो खाते इस देश का हैं पीते भी इसी देश का मगर मामूली सी तकलीफ में जिन्हें इतनी तकलीफ हो जाती है जिसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है।
देश के हित में कोई भी सरकार गलत नहीं चाहती। हाँ ये मसला अलग है कि हर किसी का काम करने का तरीका अलग होता है, हालांकि देश पिछले कई सालों से लुटता आया है।
कुठाराघात जैसी बात है ही और ऐसे लोग देश को खोखला करने की तमाम कोशिशें करते हैं। एक पत्रकार/रिपोर्टर/एंकर महाशय लगभग डेली सवेरे-सवेरे हगते समय कुछ भी पोस्ट लिखता है जिसका ध्येय हमेशा एकतरफा ही रहता है आजतक उन पोस्टों में एकरूपता देखने को नहीं मिली और उसके हरेक पोस्ट में वही गंध भी आती है सूंघने वाले सूंघते रहते हैं और कुछेक को वो गंध में इतनी मिठास लगती है कि वो बस उसी का गुणगान करने लगता है।
हमें सीखना होगा बड़ो से तो कभी छोटों से भी, अमीर से कुछ तो थोड़ा गरीब से भी, कुछ ऊँचाई से तो गहराई से भी बहुत कुछ। देश के संविधान और कानून से बढ़कर कुछ नहीं, इस बात को समझना और समझाना ही राष्ट्र हित में सर्वोपरि होगा।