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2 Jul 2021 · 17 min read

उसके बाद..!

अगर चाहो..!
तुम निगाहों में मेरी उसका सुरूर देख सकते हो..
तुम अदाओं में मेरी उसका गुरूर देख सकते हो..
#©वीरान The voice of ❤..
@कहानी :- उसके बाद…!
उम्र की बड़ी लम्बी छलांग लगाई थी उसने.बचपन से जवानी के बीच की सीढियाँ चढ़ते-चढ़ते उसके नाजुक़ पैर ज़िन्दगी की पायदान से फिसलते चले गये.लड़खडाते वह सीधे ही उम्र के उस भरे तालाब में जा गिरी थी,जहाँ सिर्फ़ जिम्मेंदारियों के दलदल थे और दूसरों की सोच में डूबने की गहराई.अपने लिये अगर कुछ बचा था तो सिर्फ़ घुटन और ऊबन का गहन अंधकार.भविष्य का निर्माण कब और कैसे हुआ! यह उसे पता ही नहीं चला.कल का भविष्य आज वर्तमान का ‘भूत’ बन कर उसके साये से लिपट गया था.जो उसके मन-मस्तिष्क और विचारों को अपनी अज्ञात जकड़न में जकडे़ हुये था.गुज़रा हुआ कल वह आज के बोझ से दब कर,पलट कर कभी देख भी नहीं पाई.
वह समझती रही उसका यह शरीर मात्र एक मशीन है जो लगातार अपनी धुरी पर घूमते-घूमते घिसने लगी है, जिसमें समय की चाबुक़ से पड़ी मार से थरथराहट आ गई थी जो विचारों और यादों के घर्षण से कभी भी टूट कर बिखर सकती है.मशीन की चरमराहट उसके होंठों पर एक सर्द आह बनकर उभर आती है.

टन्न्..! टन्न्..!टन्न्..!

वह हड़बड़ा कर खड़ी हो गई.सर झटक कर उसने उन विचारों को मस्तिष्क से निकाल देना चाहा जिन्हें वह पीछे छोड़ आई थी.अब उसके सामने यदि कुछ शेष था तो सिर्फ़ दायित्व जो उसे निभाना था.इस समय उसका दर्शन-शास्त्र का पीरियड था,वह उठकर अपने क्लास रूम की तरफ चल पड़ी.

एम डी गर्ल्स डिग्री कालेज़ की सीनियर प्रवक्ता श्रीमती मनजीत,शालीनता और गम्भीरता का एक उदाहरण थीं. छात्राओं की आदर्श और सहयोगियों की प्रिय,अपने आप में व्यस्त ‘न काहू से दोस्ती न काहू से बैर’ किसी ने कभी उनके गाम्भीर्य को छेड़ने का साहस नहीं किया.

मनजीत के बारे में यदि कोई कुछ जानता था तो बस यही कि वे एक बच्चे की माँ थीं जो कि इस समय देहरादून के एक बोर्डिंग स्कूल में रह कर पढ़ाई कर रहा है.पन्द्रह वर्षीय मनुज जब अपनी माँ से मिलने आता तो मनजीत उसका ललाट चूमकर उसे अपने सीने से लगा लेती और अपने मातृत्व का सारा अमृत उस पर उड़ेल देती तो उसकी सूखी आँखें खुशी के आँसुओं से छलछला उठतीं.

कभी-कभी मनजीत की समीपता में आकर अनेक लोगों ने उसके बीते हुये कल के बारे में जानने की कोशिश की,परन्तु मनजीत के गंभीर व्यक्तित्व पर खामोशी के उभरे संकेत चिन्ह उन्हें पीछे हटने के लिए मज़बूर कर देते.उनकी जिज्ञासा स्वत: समाप्त हो जाती.

खाली पीरियड या अकेले घर में,बिस्तर पर लेटे-लेटे तन्हाई में जब कभी मनजीत यादों के सायों के धुंध को अपने हाथों से हटाने का प्रयत्न करती तो उसकी ठहरी सूनी आँखों में लटका वह संकेत चिन्ह उसके आँसुओं से धुल जाता उसे दिखने लगतीं वो फिसलन भरी सीढियाँ जिन पर चढ़ती फिसलती वह उम्र के इस ढहते ‘बुर्ज़’ पर आकर रूक गई थी.

“नहीं…नहीं.. मेरी गुडिया..!मुझे इतना न सता मेरी बच्ची, आ मेरे पास आ..! तेरा लंगड़ा बापू अब और नहीं भाग सकता. आ मेरी रानी..! चल अब रोटी खा ले..!”पांच साल की नन्हीं नटखट बच्ची आँगन में कूदती फिर रही थी.दिवाकर बाबू बैसाखी के सहारे हाथों में खाने की कटोरी लिये उसके पीछे-पीछे उसे पकड़ कर उसे निवाला खिलाने के लिये फुदक से रहे थे.थककर हाँफने लगे तो पास पड़ी चारपाई पर बैठ गये.आ जा मेरी राजदुलारी कहकर हाँफते हुये उनके दोनों बाहें फैलाते ही वह शैतान बच्ची दिवाकर बाबू की गोद में आकर उनकी बाहों में सिमट गई.

दिवाकर बाबू अपने हाथों से छोटे-छोटे निवाले बनाकर बच्ची के मुंह में डालते जाते,जाते,वह बच्ची हँसती-रूठती खाती जा रही थी,अचानक् खाते-खाते पूंछ बैठी ‘अच्छा बापू..! एक बात बताओ..?बताओ..?मेरी अम्मा कहाँ हैं..?वह हमको चाची की तरह अपनी गोद में बिठाकर मुझे प्यार क्यों मुझे खाना क्यों नहीं खिलाती..!मुझे दूध क्यों नहीं पिलाती..! देखो न बापू..वो..वो..जो चाची की सुधा है न् बापू! चाची उसके बाल बनाती हैं..तेल लगाती हैं लेकिन मेरी..!”वह बच्ची खाते-खाते अपनी झोंक में कहे जा रही थी.उसे चाची का सुधा से प्यार अजूबा सा लग रहा था वह अभी ममता के स्पर्श अनजान थी.दिवाकर बाबू अपने कंधे पर पडे़ गमछें से आँखों का गीलापन सोख़ते हुये बोले-‘क्या मैं तुझे प्यार नहीं करता मनु..ऐसा मैंने कब कहा बापू कि मेरे बापू मुझे प्यार नहीं करते..!मेरे बापू तो मुझे प्यार करते हैं..!कहते-कहते मनु ने अपनी दोनों हथेलियों से दिवाकर बाबू का चेहरा थाम लिया.तुम क्यों रोते हो बापू..! जब भी मैं तुमसे अम्मा की बात करती हूँ,तुम रोने लगते हो..! आखिर क्यों..?मेरी अम्मा हैं कहाँ बापू..!आज बता दो न् बापू मेरी अम्मा गई कहाँ..!वह भगवान् के घर गईं है बेटा..!

क्यों गई बापू..?अपनी मनु को छोड़कर..!लौट आयेगी न बापू.!मुझे सुधा की तरह प्यार करेगी न् बापू..!वह खुशी से चहकने लगती.’हाँ आयेगी मेरी लाडो..पहले तू खाना खा ले तुझे स्कूल भी जाना है वरना वो तुझसे नाराज हो जायेगी.! ‘दिवाकर बाबू की बात सुन कर बच्ची खुश होकर जल्दी-जल्दी निवाले निगल कर अपना बस्ता उठा कर कूदती-फाँदती अपने स्कूल की तरफ भाग गई.

दिवाकर बाबू बुत से बने बैसाखी पर चेहरा टिकाये खुले दरवाजे के पार देख रहे थे जिस तरफ मनु दौड़ती हुई गई थी.
कितनी खुश थी ‘आहा..मेरी अम्मा आयेगी,मेरी अम्मा लौट आयेगी’ परन्तु दिवाकर बाबू उस मासूम को कैसे समझाते कि उसकी अम्मा उसे छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिये बहुत दूर चली गई है जहाँ से कोई वापस नहीं लौटकर नहीं आता.उनकी आँखें मनु की माँ को याद कर छलक् पड़ीं आह..!अब तो वो खुद ही उस नन्हीं मनु के माँ-बाप सब कुछ थे.

स्कूल के एक कोने में मनु अजीत के साथ बैठी बड़ी-बुढियों की तरह बतला रही थी.थी.अजीत उसी गांव के प्रधान जमींदार का इकलौता बेटा था.था.मनु से उसकी उम्र एक या दो वर्ष अधिक रही होगी बड़ा ही नटखट किसी से भी नहीं डरता था बस मनु से ही उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम रहती वो भी इसलिये कहीं मनु उससे खुट्टी न कर ले.

आज मनु अजीत को डांट पिला रही थी,अजीत अपने हाथों से दोनों कान पकड़े उसके सामने सर झुकाये खड़ा था.’तुम जानते हो मुझे बहुत गुस्सा आता है और तुम आज फिर देर से आये मैं कितनी देर से तुम्हें ढूंढ रही हूँ..!कहाँ घूम रहे थे..?इतनी देर से क्यूँ आये..? बच्चू ऐसी खिंचाई करूँगी कि तुम्हें तुम्हारी नानी याद आ जायेगी..!”आज तुम्हारी सजा यह है कि तुम मुझे गोकरन के इमली के पेड़ से ढेर सारी इमली तोड़कर दो..दो..और खबरदार..! न एक भी इमली खाना और न जेब में रखना.. बोलो मंजूर..! तो ठीक नहीं तो “कुट्टी” मैं चली अपने घर.”अरे…अरे… कहाँ चली मेरी नानी “अजीत उसके पीछे दौड़ा.. “हाँ तो मुझे सब मंजूर है तुझे इमली क्या मैं गोकरन का समूचा पेड़ ही उखाड़ कर दे देता मगर..उसका डंडा..!”अजीत अपना सर खुजलाने लगा.”चल डरपोक कहीं का “मनु बोली.”अरे डरता नहीं हूँ पर मैं तुझे आज इमली से भी बढिया खबर सुनाऊँ..कहो तो हाँ..!नहीं तो..मैं भी चला.”अजीत ने उल्टा दांव फेका और चलने लगा.

अजीत की बात सुनकर सर हिलाती हुई मनु कमर पर दोनों हाथ रखकर बोली “अच्छा,चल तू भी क्या याद रखेगा किस बड़ी दिलवाली से पाला पड़ा है..है..सुना तो सही लेकिन सुन ले खबर अच्छी हो या खराब इमली तो तुझे तोड़नी ही पडे़गी..!बोलो हाँ या न्” वह अजीत को फिर धमकाते हुए हिटलर की तरह हाथ नचाते हुये बोली.अजीत उसकी यह हरकत देखकर बोला “बड़ी कड़क है री तू,चल तेरी बात भी रख ली लेकिन माँ ने जो घर पर ढेर सारी मिठाइयां बना रखीं हैं सब ठण्डी हो जायेगीं.. कोई बात नहीं हो जाने दे तेरी इमली ज्यादा जरूरी है माँ को बोल दूँगा मनु इमली की जिद कर रही थी इसलिये हमें आने में देर हो गई.माँ तो कह भी रही थी खाकर जा मगर मेरी ही मति मारी गई थी मैंने कहा नहीं मनु मेरा स्कूल में राह तक़ रही होगी दौड़ा-दौड़ा आ रहा था रास्ते में गिर भी पड़ा चोट भी लगी और यहाँ महारानी की उल्टी घुड़की भी सुन रहा हूँ..चल तेरी इमली ही तोड़ देता हूँ.”

मनु मिठाई का नाम सुनकर ढीली हुई”क्या कह रहा था तू अजीत माँ ने आज घर पर मिठाई बनाई हैं तो ऐसे पहले क्यों नहीं बोला” अब अजीत थोड़ा टेढा हुआ “क्यों बताऊँ..तुझे पहले हवलदारी करने से फुरसत मिले तब तो मेरी बात सुने” स्कूल की घण्टी बजते ही दोनों अपनी अपनी कक्षा की तरफ चल दिये अजीत ने कहा”माँ ने कहा था स्कूल के बाद मनु को भी साथ ले आना इसलिये छुट्टी के बाद हम दोनों साथ-साथ घर चलेंगे” हाँ कहकर मनु खुश होकर अपनी कक्षा की ओर चली गई.

छुट्टी के बाद मनु अजीत के साथ अपना बस्ता सम्हाले उसके घर पहुँची.अजीत की माँ ठकुराईन ने अजीत को तो लपक कर अपनी गोद में उठा लिया और उसे रसोई में ले जाकर मिठाई खिलाने लगी तो अजीत मचला..!”माँ मनु को भी दो न् मैं उसे अपने साथ मिठाई खिलाने ही लाया हूँ इसे भी मेरी तरह गोद में बैठाकर खिलाओ न माँ इसकी माँ घर पर नहीं हैं” लेकिन ठकुराईन ने अजीत की बात को अनसुना कर दिया और एक दोने में थोड़ी सी मिठाइयां रख कर मनु को दे दी और अजीत को फिर गोद में उठाकर कमरे के अंदर चली गईं अंदर से अजीत के मचलने और ठकुराईन के घुड़कने की आवाज़ सुनकर मनु हाथ में मिठाई का दोना और मन में अजीब सी कड़वाहट लिये अपने घर की ओर चल दी.अजीत बंद कमरे की खिड़की से बेबस मनु को जाते देखता रहा.

घर पहुंच कर मिठाई का दोना दूर फेंक मनु दिवाकर बाबू के गले लिपटकर बिलख पड़ी “बापू..बस अब जल्दी से मेरी अम्मा को बुला दो..!” कहकर वो फफक-फफक कर रोने लगी.दिवाकर बाबू बिना एक शब्द बोले मनु को सीने से चिपकाये उसकी पीठ प्यार से थपकते रहे आखिर बोलते भी तो क्या..?उनके होंठ सख़्ती से भिंचे हुये थे आँखें छलछला उठी थी उनके हाथ प्यार से रोती हुई बेटी के बालों को चुपचाप सहलाये जा रहे थे.उस दिन मनु दिवाकर बाबू के कन्धों से लगी सुबकती हुई बिना कुछ खाये ही सो गई.
****
समय कुछ इसी तरह गुज़रता रहा.

अब मनु बड़ी और समझदार हो गई थी समझने लगी थी कि जो एक बार भगवान् के घर चला जाता है फिर कभी वापस लौट कर नहीं आता उसकी माँ की तरह.बापू बैसाखी के सहारे क्यों चलते हैं ये भी जान गई थी किसी ने दुश्मनी में उसके बापू की टांग तोड़कर उन्हें लँगडा कर दिया था. इसके आगे उसे कुछ नहीं मालूम चल सका था.चाची की लड़की सुधा बड़ी चालाक और घमंडी थी..चुप्पी..! बोलती भी नहीं थी.अजीत और उसकी दोस्ती अटूट होती जा रही थी लेकिन ने उसे पढ़ने या यूँ समझ लो मनु से दूर करने के लिये उसके नाना-मामा के पास शहर भेज दिया था.चाचा अक्सर उसके बापू से जायदाद के बँटवारे को लेकर लड़ते रहते”अपाहिज हो गये हो बँटवारा क्यों नहीं कर देते ऐसे लोगों को तो मर ही जाना चाहिये जो खुद के लिये ही बोझ हो” बापू चाचा की बातें सुनकर भी खामोश रहते.

और एक दिन दिवाकर बाबू भी मनु को शहर के एक ऐसे स्कूल में भर्ती कर आये जहाँ पढाई के साथ छात्रावास में रहने की व्यवस्था थी. क्योंकि न तो गांव में लड़कियों के लिये आगे पढ़ने की व्यवस्था थी और न साधन और शान्ति ही चाचा के रोज़-रोज़ के झगड़े में मनु पढ़ भी नहीं सकती थी.बापू चाहते थे कि उनकी मनु पढ लिखकर किसी लायक बन जाये फिर..उसके लिये अच्छा रिश्ता ढूंढ कर उसके हाथ पीले कर दे.

मनु न चाहते हुये भी बापू और गांव से दूर रहकर अपनी पढाई में जी जान से जुट गई.चाची की सुधा की शादी भी हो गई पर बापू उसे गांव नहीं ले गये.हमेशा खुद ही शहर आकर उससे मिल जाते खर्च के लिये रूपये-पैसै का ख्याल रखते और उस मन लगा कर पढ़ने के साथ अपना ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद देकर कंधे पर पडे़ अपने अंगौछे में अपनी नम़ आँखों को पीठ फिराकर पोंछते हुये अपनी बूढ़ी हो रही काया को बैसाखी के सहारे घसीटते हुये चले जाते.
मनु ने दर्शनशास्त्र में एमए प्रथम श्रेणी में पास कर लिया परीक्षा-फल हाथ में लिये वह बापू का इंतजार कर रही थी इधर बहुत दिनों से बापू उससे मिलने भी नहीं आये थे.परीक्षा के दिनों में वह एक दो बार आये पर वार्डेन दीदी को खर्च के रूपये देकर उसे बिन बताये ही चले गये थे ताकि उसकी पढाई में कोई असुविधा न हो.

आज उसका दिल बहुत घबरा सा रहा था वार्डेन दीदी के पास जाकर बोली “दीदी..दीदी..मैं बापू के पास गांव जाना चाहती हूँ न जाने क्यों बापू इधर बहुत दिनों से नहीं आये..! कहीं उनकी तबियत तो खराब नहीं..! वो वहाँ अकेले हैं दीदी..! उन्हें कोई एक लोटा पानी भी देने वाला नहीं..! मुझे घर जाने की परमीशन चाहिये..मुझे जाने दो दीदी”.

वार्डेन दीदी बड़ी देर तक मनु के चेहरे को ध्यान से देखती रही उसकी अपने बापू के लिये छटपटाहट को महसूस करती रहीं फिर उसे अपने नज़दीक खींचकर उसके सर पर प्यार से हाथ फेरती हुई बोलीं- “मनजीत,अब तुम बड़ी हो गई हो और पढ़ लिख कर समझदार भी मैं तुम्हें बापू के पास गांव जाने से रोकना भी नहीं चाहती मगर तुम जाओगी कहाँ..? तुम्हारी परीक्षा के दिनों में एक दिन तुम्हारे बापू का पत्र आया था जिसमें लिखा था-
“मास्टरनी जी,मेरी बेटी को अपनी छोटी बहन की तरह ख़्याल रखना वह बड़ी नादान और नासमझ है मेरी आपसे यह अंतिम विनती है मैं गांव में बँटवारे के बाद अपने हिस्से की जमीन बेचकर सारा पैसा आपके पास भेज रहा हूँ मैं खुद इसलिये नहीं आ पा रहा हूँ क्योंकि मेरे भाई ने मार-पीट करके जमीन का बँटवारा कर लिया है और मैं इस समय ज़िन्दगी और मौत के बीच उलझा हुआ हूँ और ये भी हो सकता है कि जब तक आपको मेरी चिट्ठी और पैसा मिले मैं मनु की अम्मा के पास पहुंच चुका हूँ इसलिये मेरी आपसे प्रार्थना है कि अभी मनु की परीक्षा के बीच उसे कुछ न बतायें ये पैसा एक बड़ी बहन की तरह उसके लिये जैसा उचित समझना खर्च करना या उसे दे देना जो आपको उचित लगे करना उसे अब गांव मत भेजना यहाँ अब उसका कोई भी अपना कहने वाला नहीं बचा है एक अपाहिज़ और लँगडा बाप था वो भी इस बेरहम दुनियाँ से अपनी फूल जैसी बच्ची आपके हवाले करके जा रहा है उसका ख्याल रखियेगा..मेरी गुडिया का ध्यान रखना मास्टरनी जी… नमस्ते”-दिवाकर नाथ.

वार्डेन मनु को बताते बताते खुद भी रो पड़ी और सुनकर फफक-फफक कर बिलख रही मनजीत को सीने से लगाकर दोनों बहुत देर तक रोती रहीं.

वार्डेन दीदी जब तक शहर में रहीं उन्होंने कभी मनजीत को अकेलेपन का एहसास नहीं होने दिया.एमए करने के बाद उसने एक फर्म में नौकरी कर ली.वार्डेन दीदी के जाने के बाद पहली बार उसे फिर अकेलेपन का अहसास कचोटने लगा,बापू के आदेशानुसार वह गांव नहीं गई. छात्रावास भी उसने छोड़ दिया और शहर में एक किराये का कमरा लेकर अकेले ही ज़िन्दगी से संघर्ष करने चल पड़ी.

आज उसके आफिस में नये मैनेजर को आना था पुराने मैनेजर का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया था पूरे आफिस में चहल-पहल थी, नया मैनेजर आकर अपने केबिन में जा चुका था प्रत्येक कर्मचारी नये साहब से अपना परिचय कराने उसके में उसके केबिन मे जाकर अपनी व अपने काम की खूबी बखानता नये मैनेजर का गुणगान करता और उनकी सहानुभूति का पात्र बनने का प्रयास करता.नये मैनेजर से मिलने के बाद लगभग सभी के चेहरे पर प्रसन्नता बिखरी पड़ रही थी,नया मैनेजर भला और नेक बन्दा है इसकी चुगली हर चेहरे की खुशी बता रही थी.मनजीत का भी नम्बर आया तो वह अपने विभाग की संबधित फाईल हाथ में उठाये नये मैनेजर से रूबरू होने उसके केबिन के दरवाजे पर पहुँची नाॅक करके अनुमति मिलने के बाद वह केबिन में पड़ी कुर्सियों के पास जाकर खड़ी हो गई सामने नया मैनेजर सामने अपनी चेयर में धंसा बिखरी फाईलों में उलझा हुआ था, थोड़ी देर बाद उसने चेहरा उठाकर ‘येस’ बोला और सामने खड़ी मनजीत को देखते ही हड़बड़ा कर खड़ा हो गया एक दूसरे की नज़र मिलते ही दोनों चौके.. तुम..! आप सर्..!

नये मैनेजर के स्थान पर अपने बचपन के अजीत को देखकर मनजीत आश्चर्य से उसे देखती रह गई और एक कर्मचारी की जगह मनु को देखकर अजीत बदहवास सा हो गया उन दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें.थोड़ी देर बाद हिम्मत करके अजीत अपनी कुर्सी छोड़कर मनजीत के करीब आकर उसे गौर से देखने के बाद बोला-“मनु..तुम! और यहाँ ” उसने मनजीत का पूरा एक चक्कर लगाया”ओह..! मनु तू” उसे जैसे यकीन ही नहीं हो रहा था सामने शैतान की नानी मनु को देखकर बचपन की यादें उसकी पलकें भिगोती चली गईं एक मैनेजर की मर्यादा भूल कर वह सामने बुत सी बनी खड़ी मनजीत को कन्धा पकड़ कर हिलाते हुये बोला-“बैठ मनु बैठ कहाँ चली गई थी तू ,गांव छोड़कर कितना तुझे ढूँढा दिवाकर चाचा ने भी कुछ नहीं बताया वो खुद बेचारे अपने ग़म में परेशान और बीमार थे,मुझे सबने पराया समझ लिया था कोई कुछ बताने को ही नहीं तैयार था तेरे बारे में बताने को और तूने भी मुझे कोई खबर नही दी” मनु रो रही थी सारी बातें… सारी सोंचें.. सारी तक़लीफें… सारी मर्यादा उसके दिमाग में उलट-पलट गईं थीं. अजीत को सामने देखकर उसकी आँखों के सामने उसका अपना अतीत सजीव हो उठा था परन्तु वह अचानक उठ खड़ी हुई…सर्! परन्तु अजीत ने उसे फिर कन्धे पर हाथ रख कर कुर्सी पर बिठा दिया मेज पर भरे रखे गिलास को उठाकर उसने मनजीत को दिया और वापस जाकर अपनी चेयर पर बैठ कर मनजीत को देखने लगा.

मनु को खामोश देखकर अजीत ने मनजीत को अपने बारे में बताया कि कैसे नाना-मामा के पास रहकर वह पढ़ा जवान हुआ और एक फर्म में नौकरी पाया फिर घरवालों ने उसकी मर्ज़ी पूंछे बिना उसकी शादी कर दी साल भर बाद वह एक बच्चे का बाप भी बन गया और उसकी बीमार पत्नी बच्चे को उसकी गोद में थमा कर इस दुनियाँ से चली गई.

मनजीत अजीत का साथ और हौसला पाकर आश्वस्त हुई उसे अजीत के बारे में जानकर दु:ख हुआ मगर वो कर भी क्या सकती थी सिवा अपनी संवेदना व्यक्त करने के. अजीत ने मनजीत के बारे में जानना चाहा तो उसने बताया कि अपने सिवा उसके पास बताने को कुछ भी नहीं है अगर इसे ज़िन्दगी कहते हैं तो समझ लो वह जिन्दा है.

बचपन की छेड़छाड़ और भूली-बिसरी यादों की कसक ने जल्दी ही उनके बीच के संकोच और अंजानेपन को छीन लिया दोनों आपस में घुल मिल से गये. आफिस के बाद दोनों एक साथ आफिस से बाहर निकले सभी कर्मचारी आपस में खुसर-पुसर करने लगे. लेकिन दोनों सबसे बेखबर थे.

मनु के बारे में सब जानकर अजीत की आँखों में एक खामोश निवेदन उभर आया मनु भी खोया हुआ पाने की ललक में एक गूँगा समझौता कर बैठी. अजीत मनु को अपने घर ले गया अजीत के बेटे मनुज को देखकर मनु के अंदर कुछ मचलने लगा बिन माँ के बच्चे में उसे अपना बचपन दिखने लगा उसने तड़प कर मनुज को अपने अंक में भर लिया नन्हा मनुज माँ जैसी गोद की गर्माहट पाकर उसके आंचल में सिमट गया. दूर एक कोने में खड़ा अजीत इस अनोखे रिश्ते को देखकर आँखों में उतर आई नमीं को अपने रूमाल के कोने से सोख़ रहा था.

मनु और अजीत ने एक पवित्र समझौता कर लिया.आज मनु अजीत की दुल्हन बनने अपनी कुँआरी गोद में मनुज को लिपटाये अजीत के साथ उसकी हम सफ़र बनने मंदिर जा रही थी. अजीत खामोशी से कार चला रहा था उसकी आँखें बार-बार भर आ रही थीं. मनु की गोद में मनुज खिलखिला रहा था कि अचानक एक बच्ची सड़क पर तेज जाते ट्रक से बचती उसकी कार के सामने आ गई अजीत ने बच्ची को बचाते हुये कार का स्टेयरिंग काटा और ट्रक कार के सामने आ गया…
धड़ाम…!

किसे क्या हुआ कुछ पता नहीं चला सबकी आँखें अस्पताल मेंं खुलीं मनु की बगल में मनुज सुरक्षित लेटा था मनु के जिस्म पर भी मामूली खरोंचे थी बस… अजीत! मनु चीख़ पड़ी . मनुज को बेड पर सोता छोड़कर डाक्टर की तरफ दौड़ी पता चला अजीत आपरेशन थियेटर में ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है. पट्टियों से लिपटे टूटे फूटे लहूलुहान अजीत के पास पहुंच कर मनु उससे पहली बार लिपट कर बिलख पड़ी. मनु की पीठ पर अजीत का काँपता हाथ उसे धीरज बंधाने के लिये रेंगा टूटती फंसी आवाज़ में अजीत बस इतना ही कह सका “मनु मेरी अच्छी मनु अपने मनुज का ख्याल रखना मैंने उसका नाम तुम्हारी ही याद में शायद इसी लिये रखा था कि एक दिन तुम ही उसकी माँ बनोगी ” इन शब्दों के साथ अजीत के हाथ और उसकी सांसे दोनों थम गईं. हमेशा बचपन में मनु ही अजीत को “कुट्टी” करने की धमकी देती थी आज अजीत सचमुच मनु से “कुट्टी” करके हमेशा के लिये नाराज हो गया था.

मनु का उस पल बिखरना और रोना शब्दों में हम बयां नहीं कर सकते कोई भी संवेदनशील इंसान उन पलों के एहसास को महसूस कर सकता है. फिर मनु का वहाँ था ही कौन जो उसे सम्हालता वह बिखरी तो बिखरती ही चली गई और आखिर कब तक अपने भाग्य की इस विचित्र विडंबना पर वह क्रंदन करती मनुज के रोने के स्वर ने उसे पुन: ज़िन्दगी की धरातल पर पटक दिया. मनुज उसके अजीत की अमानत था जिसे अब उसे एक कुंवारी माँ बनकर पालना था. मनुज को सीने से लगाये वह उम्र दर उम्र फलांगते हुये आगे चल दी.

जिसकी न बारात सजी और न शहनाई बजी ऐसी कुंवारी दुल्हन की गोद में एक बच्चे को देखकर समाज के ठेकेदारों, नाते- रिश्तेदारों और जान-पहचान वालों ने उस पर खूब लांछन लगाये उसे बदचलन, कलंकिनी, आवारा और कुलटा और जाने क्या -क्या नहीं कहा. यहाँ तक कि समाज ने उसे एक वेश्या तक के खिताब से नवाज़ने से भी नहीं छोड़ा. मगर उसने सबकुछ सहन किया और मनुज को यह अहसास भी नहीं होने दिया कि वह अनाथ है और वह उसकी अपनी माँ नहीं है.

मनुज मनु को ही अपनी माँ समझता रहा और एक प्यार से वंचित औरत, एक माँ को अपने आदर और सम्मान से सींचता रहा. जमाने की ठोकरें उस बेसहारा और मज़बूर कुंआरी माँ को समय-समय पर अजीब नज़रों और तानों से लहूलुहान करती रहीं तंग आकर वह चीख़ ही पड़ी “मैं कुआरी माँ नहीं…नहीं…माँ हूँ अपने मनुज की सगी माँ, अपने अजीत की सुहागिन-विधवा, उसके बच्चे की माँ… हाँ मैं मनुज की माँ हूँ माँ” उसके आर्तनाद को सुनकर समाज और जमाने के ठेकेदार अपना सर नीचा किये वक्त के परदे में छुपते चले गये.

जबकि वह जानती थी कि वह एक ऐसी अभागिन है जिसे आज तक ऐसे प्यार की तलाश है जो उसके ह्रदय को, उसकी आत्मा को ठंडक पहुँचा सके. उसने जब-जब भी खुशी और सुख को अपने दामन में भरना चाहा, किसी को अपनाना या अपना बनाना चाहा किसी की बेटी, किसी की पत्नि बनना चाहा वह उससे दूर होता चला गया और भाग्य ने उसे दिया भी तो क्या शादी से पहले किसी की पत्नि बनने से पहले एक कुंवारी माँ बनने काय सुख..!जो पयाया था उसकी कोंख़ से नहीं जन्मा था मगर अब उसका है ही नहीं जिगर का टुकड़ा है. जबकि उसके मातृत्व की कोंख़ आज भी सूनी है वह आज भी पति के प्यार और स्पर्श से अछूती है. माँ बनकर अपने गर्भ से जन्मीं औलाद के सुख से वंचित एक अतृप्त माँ की आत्मा.

लेकिन फिर भी अब वो एक माँ थी अपने मनुज की माँ जिसके लालन-पालन के लिये उसने अपने अधूरे पति को वचन दिया था और अब उसे उसी के लिये जीना था. ओह.! ये कैसा भाग्य है.!कैसा है इस प्यार का अहसास जीवन से भी प्यारा और मौत से भी ज्यादा तक़लीफ़देह और भयावह.

उसने वह शहर छोड़ दिया पुराने सारे जानकारों से मुंह मोड़ लिया. इस नये शहर में आकर वह एम डी कालेज़ में नौकरी करने लगी बापू के खून-पसीने की पढाई से वह यहाँ दर्शनशास्त्र की प्रवक्ता बन गई. यहाँ सब उसे विधवा और मनुज की माँ के रूप में जानते हैं. कोई उसके घावों को कुरेद न दे इसलिये उसने गहन गंभीरता का मुखौटा लगा लिया है अपने युवा अरमानों का उसने गला घोंट कर उसने अपनी इच्छाओं और कामनाओं को मातृत्व में घोल कर मनुज को पिला दिया.
बस,यूँ ही कभी-कभी वह तन्हाई में अपने अतीत की धुंध को साफ कर विगत ज़िन्दगी के आईने में झांक लेती है. उसे उम्मीद है कि कल मनुज बड़ा होकर अपनी जिम्मेदारियों को खुद समझने लगेगा तो वह उसकी दुनियाँ को खूबसूरत लम्हों से सजाकर अपने फर्ज़ को पूरा कर उस सफ़र पर निकल पडे़गी जहाँ कल माँ गईं फिर बापू और उसका अधूरा हमसफ़र अजीत गया था फिर कभी वापस नहीं लौटने के लिये दूर.. बहुत दूर…!
इति..
©वीरान The voice of
मो0-9453728165
आपकी समीक्षा की सदैव प्रतिक्षा रहेगी-यशवन्त-वीरान

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सलाह
श्याम सिंह बिष्ट
पुस्तक तो पुस्तक रहा, पाठक हुए महान।
पुस्तक तो पुस्तक रहा, पाठक हुए महान।
Manoj Mahato
गलतियों को स्वीकार कर सुधार कर लेना ही सर्वोत्तम विकल्प है।
गलतियों को स्वीकार कर सुधार कर लेना ही सर्वोत्तम विकल्प है।
Paras Nath Jha
कल्पना ही हसीन है,
कल्पना ही हसीन है,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
२०२३
२०२३
Neelam Sharma
2929.*पूर्णिका*
2929.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*अभागे पति पछताए (हास्य कुंडलिया)*
*अभागे पति पछताए (हास्य कुंडलिया)*
Ravi Prakash
भ्रूणहत्या
भ्रूणहत्या
Neeraj Agarwal
"परमार्थ"
Dr. Kishan tandon kranti
पिता
पिता
Shweta Soni
रिवायत
रिवायत
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
अरमानों की भीड़ में,
अरमानों की भीड़ में,
Mahendra Narayan
कुछ यूं मेरा इस दुनिया में,
कुछ यूं मेरा इस दुनिया में,
Lokesh Singh
"मदद"
*Author प्रणय प्रभात*
उलझते रिश्तो को सुलझाना मुश्किल हो गया है
उलझते रिश्तो को सुलझाना मुश्किल हो गया है
Harminder Kaur
हमने यूं ही नहीं मुड़ने का फैसला किया था
हमने यूं ही नहीं मुड़ने का फैसला किया था
कवि दीपक बवेजा
क्या कहेंगे लोग
क्या कहेंगे लोग
Surinder blackpen
गुरु सर्व ज्ञानो का खजाना
गुरु सर्व ज्ञानो का खजाना
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
शाश्वत सत्य
शाश्वत सत्य
Dr.Pratibha Prakash
तुम्हारा घर से चला जाना
तुम्हारा घर से चला जाना
Dheerja Sharma
क्या मागे माँ तुझसे हम, बिन मांगे सब पाया है
क्या मागे माँ तुझसे हम, बिन मांगे सब पाया है
Anil chobisa
बरस रहे है हम ख्वाबो की बरसात मे
बरस रहे है हम ख्वाबो की बरसात मे
देवराज यादव
बन के आंसू
बन के आंसू
Dr fauzia Naseem shad
महामारी एक प्रकोप
महामारी एक प्रकोप
Sueta Dutt Chaudhary Fiji
नौकरी न मिलने पर अपने आप को अयोग्य वह समझते हैं जिनके अंदर ख
नौकरी न मिलने पर अपने आप को अयोग्य वह समझते हैं जिनके अंदर ख
Gouri tiwari
भीष्म के उत्तरायण
भीष्म के उत्तरायण
Shaily
बम भोले।
बम भोले।
Anil Mishra Prahari
*****खुद का परिचय *****
*****खुद का परिचय *****
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
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